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सत्य के दस प्रकार
लक्ष्मीपति । उसके पास लक्ष्मी कुछ भी नहीं है फिर भी वह नाम सत्य है । उसे लक्ष्मीपति ही कहा जाएगा, चाहे वह फकीर ही क्यों न हो । यह सापेक्ष सत्य है नाम के कारण । रूप सत्य
पांचवां है रूप सत्य । सत्य आकारगत और वाक्गत भी होता है । नाम और रूप-इन दोनों से सत्य जुड़ जाता है। एक पुरुष है। वह स्त्री वेश में आया। आदमी उसे स्त्री कह देता है। यह रूप की सापेक्षता है। वर्तमान वेश के आधार पर उसका वैसा संबोधन कर देना, यह रूप सत्य
प्रतीत्य सत्य
छठा है प्रतीत्य सत्य । यह भी सापेक्ष है। एक अध्यापक ने लकीर खींचकर विद्यार्थी से कहा-इस रेखा को छोटी करो पर मिटाना नहीं है । विद्यार्थी बुद्धिमान् था। उसने उस रेखा के पास बड़ी रेखा खींच दी। रेखा छोटी हो गई। यह प्रतीत्य सत्य है। बौद्ध धर्म ने प्रतीत्य समुत्पाद का पूरा सिद्धांत गढ़ लिया । उत्पाद प्रतीत्य सापेक्ष होता है, निरपेक्ष नहीं होता। व्यवहार सत्य
सातवां है व्यवहार सत्य । व्यक्ति कहता है-पहाड़ जल रहा है, गांव आ रहा है । जल रही है आग पर कहा जाता है-पहाड़ जल रहा है । व्यक्ति स्वयं चल रहा है पर कहा जाता है-गांव आ रहा है। गांव स्थिर है पर उसे गतिशील कह दिया जाता है। यह है व्यवहार सत्य । जब हम निश्चय में जाते हैं तब सारी स्थितियां बदल जाती हैं। निश्चय की भाषा है-अग्नि पलाल को जलाती ही नहीं है, घड़ा फूटता ही नहीं है। ये बहुत गहरी बाते हैं। हम निश्चय में जाते हैं तब हमारा स्वर होता है-पलाल जब तक पलाल की पर्याय में है तब तक वह कभी जलेगा ही नहीं। जो फूटता है, वह घट नहीं है । यह निश्चय का सत्य है । व्यवहार का सत्य है-एक स्थूल आधार पर वस्तु का निर्णय कर देना। भाव सत्य
आठवां है भाव सत्य । दूध सफेद होता है। क्या वह सफेद ही है ? रंग विज्ञान की भाषा में सोचें तो सफेद का मतलब है सभी रंगों का मिश्रण । व्यक्त पर्याय के आधार पर किसी वस्तु का प्रतिपादन कर देना, यह है भाव सत्य । पर्याय दो प्रकार के होते हैं व्यक्त और अव्यक्त । हम अव्यक्त पर्यायों की उपेक्षा कर देते हैं । जो सामने दीख रहा है, उसी के आधार पर उसका निरूपण कर देते हैं। यह सापेक्ष सत्य है, निरपेक्ष नहीं हो सकता । भाव सत्य का तात्पर्य है-व्यक्त पर्याय के आधार पर किसी वस्तु का निरूपण
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