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________________ १३८ मंजिल के पड़ाव पर काव्य में उसका निरूपण कर दिया गया। कहा गया-यह कवि-समय है, कवि-सम्मत सत्य है, इसीलिए काव्य को कभी झूठा नहीं कहा जा सकता। सत्य है ऋजुता जैसे जनपद सत्य होता है वैसे ही सम्मत सत्य होता है। जिस विधा में जो बात मान ली गई, वह सत्य की परिधि में आ गई। वस्तुतः असत्य होता है प्रवंचना में । जहां माया है, ठगने की मनोवृत्ति है, वहां असत्य बनता है। सत्य की परिभाषा की गई-ऋजुता सत्य है । जो काया की ऋजुता है, भाषा और मन की ऋजुता है, वह सत्य है। यदि ऋजुता को सत्य नहीं मानते तो सारा झूठ हो जाता किन्तु ऋजुता को सत्य माना गया है। जहां कोई कुटिलता नहीं है वहां सत्य पनपता है इसीलिए सत्य को सापेक्ष माना गया। सारे झगड़े होते हैं निरपेक्षता के कारण । हम सापेक्ष सत्य का अनुभव नहीं करते इसीलिए समस्या उलझ जाती है। सापेक्षता के आधार पर सत्य को समझा जा सकता है, यह बात समझ में आए तो समस्या ही पैदा न हो। महावीर का कथन भगवान महावीर ने कहा-तुम पहले यह समझो-वह जो बोल रहा है, किस प्रांत की भाषा बोल रहा है ? कहां और कैसे बोल रहा है ? पहले वाणी को समझो। सीधे लड़ाई-झगड़े में मत जाओ। कुछ सोचो, समझो। अलग-अलग भाषा और मुहावरे हैं। तुम जनपद की अपेक्षा से सचाई को समझो। सम्मत सचाई के संदर्भ में भी यही बात है। तेरापंथ में एक आचार्य की परम्परा है। एक आचार्य का आदेश सर्वोपरि है, वह सम्मत है। सापेक्ष और सम्मत के आधार पर उस सचाई को समझने का प्रयत्न होना चाहिए। स्थापना सत्य तीसरा है स्थापना सत्य। कोई भी स्थापना कर दी गई, वह स्थापना सत्य है । एक बच्चा घोड़ा बन गया। दूसरा बच्चा उस पर चढ़ा हुआ है । एक काठ का घोड़ा बना दिया गया। बच्चा उसे चला रहा है। उससे पूछा गया-क्या कर रहे हो ? उसका उत्तर होगा-घोड़ा चला रहा हूं । यह असत्य नहीं है, स्थापना सत्य है । जो प्रतिमा है, वह भी स्थापना सत्य है । इस सत्य को हम झुठलाएंगे नहीं, लेकिन यह सापेक्ष है । नाम सत्य __ चौथा है नाम सत्य। एक व्यक्ति का नाम रखा गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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