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________________ सत्य के दस प्रकार वस्तु और शब्द-दोनों जुड़ जाते हैं। जोड़ने वाली शक्ति है स्वाभाविक । सामर्थ्य और समय से जो अर्थ-बोध कराता है, वह है शब्द । स्वाभाविकसामर्थ्य समयाभ्यां अर्थबोधनिबंधनं शब्दः । समय होता है संकेत । घड़ा घट शब्द से जुड़ गया किन्तु वह सापेक्ष है। पूछा गया-अगर संकेत शब्दगत हो गया तो वह सत्य होगा? कहा गया-सत्य हमेशा सापेक्ष होगा। वाणीगत जो सत्य है, वह निरपेक्ष नहीं होता । वस्तु अपने स्वरूप में निरपेक्ष है। जहां शब्द से जुड़ेगी वहां सापेक्ष हो जाएगी। सत्य : दस प्रकार इस सापेक्षता को समझाने के लिए अनेक उदाहरण दिए गए हैं। स्थानांग सूत्र में उनको दस भागों में विभक्त किया गया है१. जनपद सत्य ६. प्रतीत्य सत्य २. सम्मत सत्य ७. व्यवहार सत्य ३. स्थापना सत्य ८. भाव सत्य ४. नाम सत्य ९. योग सत्य ५. रूप सत्य १०. औपम्य सत्य ये सब वाणीगत सत्य के प्रकार हैं।' जनपद सत्य पहला है जनपद सत्य । एक व्यक्ति ने कहा-यह पानी है । दूसरा बोला-गलत है, यह वाटर है । एक व्यक्ति बोला-वह बुक लायो। उसने कहा-क्या किताब लाऊं? इस बात को लेकर झगड़ा हो गया क्योंकि उसने समझा नहीं यह जनपद सत्य है । जनपद में अलग-अलग भाषा के अलग शब्द होते हैं। यदि आदमी निरपेक्षता से सुन लेता है तो बड़ी समस्या पैदा हो जाती है। कोई शब्द राजस्थान में अच्छा माना जाता है पर किसी प्रांत में उसे बुरा भी माना जाता है । जो अपने जनपद की भाषा से जुड़ा है, वह जनपद सत्य सम्मत सत्य दूसरा है सम्मत सत्य । काव्यानुशासन का एक नियम है-जहां भी पानी है वहां कमल का वर्णन कर देना चाहिए। समुद्र में भी कमल का वर्णन किया गया । क्या समुद्र में कमल होता है ? समुद्र में कमल नहीं होता १. ठाणं १०८९ जणवय सम्मय ठवणा, णामे रूखे पड़च्च सच्चे य । ववहार माव जोगे, बसमे ओपम्म सच्चे य॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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