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मंजिल के पड़ाव
रोगोत्पत्ति के कारण अलग-अलग हैं । स्थानांग सूत्र में जो रोगों के कारण बतलाए गए हैं, उनका बीमारी से सीधा संबंध नहीं है। त्रिदोषों में गड़बड़ी क्यों होती है ? प्राणशक्ति कमजोर क्यों होती है ? स्थानांग सूत्र में इनके हेतु बतलाए गए हैं। हमारी सावधानी या जागरूकता यह रहे-त्रिदोष को कुपित होने का अवसर न मिले । जीवाणु या कीटाणु को माक्रमण करने का अवसर न मिले । हमारी प्राणशक्ति कमजोर न बने । शरीर में विजातीय तत्त्वों का संचय न होने पाए। इस जागरूकता से जुड़े नौ सूत्र हैं :
१. निरन्तर बैठे रहना या अति भोजन करना । २. अहितकर आसन पर बैठना या अहितकर भोजन करना। ३. अति निद्रा। ४. अति जागरण । ५. उच्चार (मल) का निरोध । ६. प्रस्रवण का निरोध । ७. पंथगमन । ८. भोजन की प्रतिकूलता ।
९. इन्द्रियार्थ विकोपन-कामविकार । सुखासिका
बीमारी का पहला हेतु है अत्यासन या अत्यशन । बहुत लंबा बैठना, बहुत लंबे समय तक एक आसन पर बैठे रहना बीमार होने का एक हेतु है। पांच-छह घंटे एक स्थान पर बैठे रहना दोषों को कुपित करने का बड़ा कारण है । सूगर की बीमारी का मूल कारण माना गया है सुखासिका । सुख से बैठे रहना, न घूमना, न टहलना, न आसन और न व्यायाम करना। भोजन करना और भोजन करते ही लेट जाना । यह अत्यासन बीमारी का प्रमुख कारण है। इसका दूसरा विकल्प है अत्यशन-बहुत ज्यादा खाना । यह भी रोग का हेतु बनता है। महितकर भोजन
बीमारी का दूसरा कारण है अहितकर भोजन करना । पोषणशास्त्र में तीन शब्द प्रचलित हैं-पोषण, अपोषण और कुपोषण । हितकर भोजन न मिले तो बीमारी की संभावना बन जाती है। विरुद्ध भोजन भी बीमारी का हेतु बन जाता है । करेला खाया, ऊपर दूध पी लिया। खरबूजा और ककड़ी खाई, ऊपर दूध पी लिया। यह विरुद्ध भोजन है। इसे अहितकर भोजन माना जाता है । आज हितकर भोजन की तालिका बहुत लंबी हो चुकी है। स्टार्च और प्रोटीन एक साथ नहीं खाने चाहिए । इतना ध्यान हम रख सकें
१.ठाण ९/१३
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