________________
रोगोत्पत्ति के नौ कारण
मनुष्य ने पवित्र अभ्यर्थना की-मुझे आरोग्य मिले, बोधि और समाधि मिले । प्रत्येक व्यक्ति को यह त्रिपदी चाहिए-आरोग्य, बोधि और समाधि । इसके सिवाय कुछ नहीं चाहिए । दुनिया में जो सारभूत है, वह इस त्रिपदी में समाहित है। आरोग्य बहुत आवश्यक है। रोग के तीन प्रकार हैं-शारीरिक, मानसिक और उमय । शरीर की बीमारी, मन की बीमारी और शरीर तथा मन-दोनों की बीमारी । आज की भाषा में इसे मनोकायिक बीमारी कहा जाता है । प्रत्येक व्यक्ति चाहता है-इन रोगों से मुक्ति मिले । इसका कारण है-हमारी शिक्षा में जो बाधक तत्त्व हैं, उनमें एक है रोग । जब तक रोग है, तब तक शिक्षा भी प्राप्त नहीं हो सकती इसलिए स्वस्थ रहना एक अनिवार्य शर्त मानी गई है। क्यों होता है रोग
प्रश्न है-रोग होता क्यों है ? स्थानांग सूत्र में रोग के नौ कारण बतलाए गए हैं। उन नौ कारणों को रोग की सामग्री भी कहा जा सकता है। आयुर्वेद के अनुसार रोग के तीन कारण माने जाते हैं-वात, पित्त और कफ । इन दोषों का वैषम्य होना रोग है । इन तीनों में कहीं कोई गड़बड़ी
दा होती है तो रोग पैदा हो जाता है । ऐलोपेथी का सिद्धांत है कि जर्स या वायरस रोग का कारण बनता है। होम्योपैथ यह नहीं मानता कि इन कीटाणुओं या जीवाणुओं से रोग पैदा होता है । उसका मानना है-बीमारी का कारण है प्राणशक्ति में गड़बड़ी होना और वह कारण बहुत गहरे में, अववेतन में बैठा हुआ है । जब प्राणशक्ति का असंतुलन होता है, बीमारी पैदा हो जाती है । आयुर्वेद में रोग को कर्मज भी माना गया है। कृत-कर्म का विपाक पाता है और व्यक्ति बीमार हो जाता है । बहुत लोग ऐसे होते हैं, जो दुनिया पर में निदान करा लेते हैं पर रोग का पता नहीं चलता । उसका इलाज भी संभव नहीं बनता। यह रोग कर्म-जनित होता है। प्राकृतिक चिकित्सा का सद्धांत है-विजातीय द्रव्यों का संग्रह बीमारी का कारण है। जब शरीर विजातीय द्रव्य इकट्ठे हो जाते हैं, बीमारी पैदा हो जाती है । रोगोत्पत्ति: नौ कारण
ये अनेक चिकित्सा की पद्धतियां हैं और इनके द्वारा प्रतिपादित
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org