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संघ विकास के लिए सतत जागरूकता
सूत्र मुनिचर्या या व्यक्तित्व निर्माण में बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । और प्रयोग प्रत्येक साधनाशील व्यक्ति का सहज स्वीकृत चाहिए ।
व्यक्ति केवल व्यक्ति नहीं है । वह संघ और समाज का सदस्य है । वह यह सोचे - मैं मकेला मनका नहीं हूं किन्तु माला में पिरोया हुआ मनका हूं । व्यक्ति अपना विकास करे, यह उसका दायित्व है । वह संघ का विकास करे, यह उसका उत्तरदायित्व है ।
शिष्यों का संग्रह
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इसका उपयोग दायित्व होना
संघीय स्वास्थ्य के संदर्भ में महावीर का पहला निर्देश है- शिष्यों का संग्रह करना । शिष्यों का उत्पादन करना, उन्हें तैयार करना, व्यक्ति का संघीय उत्तरदायित्व है । दूसरे शब्दों में इसका तात्पर्य है परिवार को विकसित करना । यह ऐसा संग्रह है – संयम की नौकाओं का निर्माण करो और लोगों को पार उतारो। ऐसे माध्यमों का संग्रह करो, जो स्व और पर - दोनों के लिए कल्याणकारी सिद्ध हों । शिष्य संग्रह का उद्देश्य हैसंयमनिष्ठ व्यक्तियों का निर्माण |
आचार का शिक्षण
संघीय स्वास्थ्य के संदर्भ में महावीर का दूसरा निर्देश है— केवल संग्रह ही मत करो । जो नए लोग जुड़े हैं, उन्हें आचार-गोचर सिखाओ, आचार के प्रति जागरूक करो । नए श्रावक तैयार करो । विशेषतः पुत्रियों और पुत्र वधुओं को संयम के संस्कार दो । उनको है पूरे परिवार को संस्कारित करना । हम यह आलोचना प्रमाद तो नहीं हो रहा है । इस प्रमाद का मिटना संघीय संजीवनी बनता है ।
संस्कारित करने का अर्थ
ग्लान की सेवा
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संघीय स्वास्थ्य के संदर्भ में महावीर का तीसरा निर्देश है— जो रोगी हैं, ग्लान हैं, उनकी अग्लान भाव से सेवा करने के लिए जागरूक रहो | भगवान महावीर ने सेवा को महान् धर्मं कहा । यह संघीय स्वास्थ्य की दृष्टि सबसे शक्तिशाली निर्देश है । जिस संघ में रोगी साधु-साध्वियों की सेवा नहीं होती, उसे संघ कहने में भी संकोच होता है । सघ वह है, जहां असमर्थ बीमार, कमजोर, मन और भावना से रुग्ण व्यक्तियों की निःस्वार्थं भाव से सेवा की जाती है । यह निर्देश संघ की सुरक्षा, अखण्डता और गति - शीलता का आश्वासन बनता है ।
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करें - कहीं इसमें
स्वास्थ्य के लिए
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