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________________ संघ विकास के लिए सतत जागरूकता सूत्र मुनिचर्या या व्यक्तित्व निर्माण में बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । और प्रयोग प्रत्येक साधनाशील व्यक्ति का सहज स्वीकृत चाहिए । व्यक्ति केवल व्यक्ति नहीं है । वह संघ और समाज का सदस्य है । वह यह सोचे - मैं मकेला मनका नहीं हूं किन्तु माला में पिरोया हुआ मनका हूं । व्यक्ति अपना विकास करे, यह उसका दायित्व है । वह संघ का विकास करे, यह उसका उत्तरदायित्व है । शिष्यों का संग्रह १२९ इसका उपयोग दायित्व होना संघीय स्वास्थ्य के संदर्भ में महावीर का पहला निर्देश है- शिष्यों का संग्रह करना । शिष्यों का उत्पादन करना, उन्हें तैयार करना, व्यक्ति का संघीय उत्तरदायित्व है । दूसरे शब्दों में इसका तात्पर्य है परिवार को विकसित करना । यह ऐसा संग्रह है – संयम की नौकाओं का निर्माण करो और लोगों को पार उतारो। ऐसे माध्यमों का संग्रह करो, जो स्व और पर - दोनों के लिए कल्याणकारी सिद्ध हों । शिष्य संग्रह का उद्देश्य हैसंयमनिष्ठ व्यक्तियों का निर्माण | आचार का शिक्षण संघीय स्वास्थ्य के संदर्भ में महावीर का दूसरा निर्देश है— केवल संग्रह ही मत करो । जो नए लोग जुड़े हैं, उन्हें आचार-गोचर सिखाओ, आचार के प्रति जागरूक करो । नए श्रावक तैयार करो । विशेषतः पुत्रियों और पुत्र वधुओं को संयम के संस्कार दो । उनको है पूरे परिवार को संस्कारित करना । हम यह आलोचना प्रमाद तो नहीं हो रहा है । इस प्रमाद का मिटना संघीय संजीवनी बनता है । संस्कारित करने का अर्थ ग्लान की सेवा Jain Education International संघीय स्वास्थ्य के संदर्भ में महावीर का तीसरा निर्देश है— जो रोगी हैं, ग्लान हैं, उनकी अग्लान भाव से सेवा करने के लिए जागरूक रहो | भगवान महावीर ने सेवा को महान् धर्मं कहा । यह संघीय स्वास्थ्य की दृष्टि सबसे शक्तिशाली निर्देश है । जिस संघ में रोगी साधु-साध्वियों की सेवा नहीं होती, उसे संघ कहने में भी संकोच होता है । सघ वह है, जहां असमर्थ बीमार, कमजोर, मन और भावना से रुग्ण व्यक्तियों की निःस्वार्थं भाव से सेवा की जाती है । यह निर्देश संघ की सुरक्षा, अखण्डता और गति - शीलता का आश्वासन बनता है । For Private & Personal Use Only करें - कहीं इसमें स्वास्थ्य के लिए www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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