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मंजिल के पड़ाव भिखारी कौन ?
वैशेषिक दर्शन के प्रणेता हुए हैं महर्षि कणाद । उनका मूल नाम कणाद नहीं था । यह नाम क्यों हुभा ? जब खेत-खलिहान निकाल लिए जाते तब वे बिखरे हुए अन्न के दानों को चुन चुन कर खाते इसलिए उनका नाम पड़ गया कणाद । ऋषि कणाद बहुत संयमी थे। राजा को पता लगा-मेरे राज्य में ऐसा आदमी है, जो अन्न के दाने चुग चुग कर पेट भरता है । राजा ने अपने कर्मकरों के साथ खाने का सामान भेजा। महर्षि कणाद ने उसे अस्वीकार करते हुए कहा-मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है। जो गरीब हैं, उन्हें बांट दो यह भोजन । राजा स्वयं महर्षि के पास आया। उसने बहुत सारा धन-धान्य राजा को उपहृत करना चाहा । महर्षि ने वही उत्तर दियाउन्हें बांट दो, जो गरीब हैं । राजा ने मुस्कुराते हुए कहा-तुमसे ज्यादा गरीब कौन होगा ? महर्षि कणाद ने फिर भी कुछ नहीं लिया। राजा महलों में लौट आया ! रानी ने कहा-महाराज ! आपको उसे गरीब नहीं कहना चाहिए। उसके पास स्वर्ण-सिद्धि की विद्या है। आपको उससे स्वर्ण-सिद्धि की याचना करनी चाहिए । राजा के मन में लोभ जाग गया । वह महाष के पास आया। राजा ने महर्षि से क्षमा मांगते हुए कहा-महाराज ! स्वर्णसिद्धि की विद्या सिखाएं । राजा लालची की मुद्रा में महर्षि के सामने हाथ जोड़कर खड़ा था। कणाद बोले- राजन् ! तुम मुझे गरीब बता रहे थे। गरीब तुम हो या मैं ? भिखारी कौन है ? क्या मैं कभी तुम्हारे दरवाजे पर मांगने आया ? राजा का सिर लज्जा से नीचे झुक गया।
जहां अनासक्ति, त्याग और संयम का तेज होता है वहां दिव्यता प्रगट होती है । यह महान् सूत्र है-मेरा संयम इतना बढ़े कि नए कर्मों का बंधन न हो । जब यह स्थिति आती है, तेजस्विता बढ़ जाती है । पुराने बंधन टूटे
महावीर का चौथा निर्देश है-जो कर्म संचित है, पुराना जो भंडार भरा है, उस खजाने को खाली करो। घर में वर्षा का जो पानी आ रहा है, उसे संयम के द्वारा रोको और तपस्या के द्वारा उसे उलीच कर खाली करो। जब ये दोनों बातें होंगी-नया बंधन नहीं हो रहा है, पुराने बंधन टूटते जा रहे हैं, तब आत्मा में दिव्य प्रकाश और दिव्य ज्योति का जागरण होगा। दायित्व : उत्तरदायित्व
ये चार निर्देश व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए हैं। ये व्यक्तित्व के समग्र विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । हम संघ के सदस्य हैं किन्तु उससे पहले यह सोचें-हम व्यक्ति हैं और व्यक्ति के नाते हमारा दायित्व क्या है ? ये
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