________________
संघ विकास के लिए सतत जागरूकता
१२७
लिए प्रमाद नहीं करना है, निरन्तर जागरूक रहना है। हमने अभी सुना क्या है ? दुनिया बहुत बड़ी है । बहुत बातें अश्रुत हैं । न जाने कितना समय लग जाए सब कुछ सुनने और जानने में। ज्ञान का कोई अंत नहीं है। नईनई बातें सुनो, नई नई बातें पढ़ो, नया ज्ञान करो। कितनी बड़ी है ज्ञान राशि । एक पूर्व का ज्ञान भी यदि सामने रख दिया जाए तो आदमी अवाक रह जाए । उतना ज्ञान है एक पूर्व में । यह वैयक्तिक जागरूकता का सूत्र हैज्ञान के लिए सदा सावधान और अप्रमत्त बने रहो। श्रुत का परिशीलन
___ महावीर का दूसरा निर्देश है-~-जो श्रुत धर्म है, जितना सुना या जाना है, उसके सम्यग् अवग्रहण और अवधारण के लिए जागरूक रहो। जो सुना है, उसका अवग्रहण करो। ईहा, अवाय और धारणा करो। उसकी स्मृति करो। अवग्रह से स्मृति तक की जो प्रक्रिया है, वह ज्ञान को व्यापक बनाने की प्रक्रिया है । जैसे पानी में तेल की बूंद फैल जाती है वैसे ही इस प्रक्रिया से हमारा ज्ञान व्यापक बन जाता है । व्यक्ति का विकास : संघ का विकास
__ज्ञान को ग्रहण करने की प्रक्रिया और ज्ञान को व्यापक बनाने की प्रक्रिया-ये दोनों ज्ञान की आराधना के लिए महत्त्वपूर्ण सूत्र हैं। हमारी जिज्ञासा बनी रहे, नई बातों को जानते रहें तो ज्ञान का विकास हो सकता है। संघ का जो विकास हुआ है, उसका कारण है-नया नया ज्ञान ग्रहण करने की क्षमता । ये व्यक्तिगत विकास के दो सूत्र हैं, जो संघ को भी प्रभावित करते हैं। इस दृष्टि से ये संघीय विकास के सूत्र भी माने जा सकते हैं। संघ से जुड़ा व्यक्ति जितना ज्ञान का विकास करेगा, सघ का भी उतना ही ज्यादा विकास होगा । व्यक्ति-विकास से जुड़ा है संघ का विकास । नए कर्म का अर्जन न हो
महावीर का तीसरा निर्देश है-व्यक्ति यह चिन्तन करे कि नए कर्म का अर्जन न हो, नया बंधन न हो । व्यक्ति सोचे-मैंने मुक्ति का मार्ग समझा है, आत्मा की शुद्धि का मूल्य समझा है । पहले अज्ञान या प्रमादवश कुछ कर्म किए हैं किन्तु अब नया बंधन न करूं । यह जागरूकता होनी चाहिए । नए सिरे से यह मकड़ी अपने लिए जाला न बुने । यह रेशम का कीड़ा अपने लिए कोश न बनाए। फिर उसी कोश में न फंस जाए । यह संभव है संयम की साधना के द्वारा । आसक्ति न जागे । जब यह आत्म-आराधना का चिन्तन प्रस्फुटित होता है-नए कर्मों का संग्रह न हो, तब व्यक्ति शक्तिशाली बन जाता है, तेजस्वी और यशस्वी बन जाता है । उसकी सारी दरिद्रता दूर हो जाती है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org