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________________ २८ संघ विकास के लिए सतत जागरूकता व्यक्ति और संघ-ये दो शब्द हैं । व्यक्ति अकेला है और संघ अनेक व्यक्तियों का समूह । व्यक्ति स्वस्थ, संघ स्वस्थ । प्रश्न है, व्यक्ति और संघदोनों का आरोग्य कैसे बना रहे ? उसके लिए एक आचार-संहिता है और वह अप्रमाद की आचार-संहिता है। संघ जागरूक कैसे रह सकता है ? व्यक्ति जागरूक कैसे रह सकता है ? स्वस्थता के सूत्र हम पहले व्यक्ति को लें, क्योंकि व्यक्ति के बिना संघ नहीं बनता । बिन्दु के बिना सिन्धु नहीं बनता। न्यायशास्त्र में व्यक्ति और जाति पर बहुत चर्चा है । हमें व्यक्ति पर ध्यान देना होगा । भगवान महावीर ने व्यक्ति और सघ-दोनों की स्वस्थता के लिए आठ सूत्रों का प्रतिपादन किया। उनमें पहले चार सूत्र व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए हैं और अन्तिम चार सूत्र संघीय स्वास्थ्य के लिए हैं १. अश्रुत धर्मों को सम्यक् प्रकार से सुनने के लिए जागरूक रहना । २. सुने हुए धर्मों के मानसिक ग्रहण और उनकी स्थिर स्मृति के लिए जागरूक रहना। ३. संयम के द्वारा नए कर्मों का विशोधन करने के लिए जागरूक रहना। ४. तपस्या के द्वारा पुराने कर्मों का विवेचन और निरोध करने के लिए जागरूक रहना। ५. असंगृहीत शिष्यों को आश्रय देने के लिए जागरूक रहना । ६. शैक्ष-नवदीक्षित मुनि को आचार-गोचर का सम्यग् बोध कराने के लिए जागरूक रहना । ७. ग्लान की अग्लान भाव से सेवा करने के लिए जागरूक रहना । ८. सार्मिकों में परस्पर कलह उत्पन्न होने पर, मध्यस्थ भाव को स्वीकार कर उसे उपशान्त करने के लिए जागरूक रहना । अश्रुत का श्रवण महावीर का पहला निर्देश है-जो धर्म नहीं सुने हैं, उन्हें सुनने के १. ठाणं ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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