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गणि सम्पदा
संघ और संघपति- इन दोनों में गहरा सम्बन्ध है । संघ शक्तिशाली तभी होता है, जब संघपति शक्तिशाली होता है । वह संघ धन्य होता है, समुद्र होता है, जिसका संघपति सुदृढ़ और शक्तिशाली होता है । संघपतिको मापने के लिए अनेक मानदण्ड प्रस्तुत किए गए हैं। संघ की संपन्नता के लिए जरूरी है कि उसका आचार्य सम्पन्न हो । संपन्नता पदार्थ से भी होती है और व्यक्ति की विशिष्टता से भी होती है । संघपति, गणि या आचार्य के पास आठ प्रकार की संपदाएं होनी चाहिए। उसके पास आठ प्रकार के ऐसे संपत्ति भण्डार होते हैं, जो दूसरों को भी लाभान्वित करते हैं । उससे घ की यशस्विता और वर्चस्विता का विकास भी होता है ।
आठ सम्पदाएं
स्थानांग सूत्र में आचार्य की आठ सम्पदाओं का उल्लेख है, उसकी पृष्ठभूमि में अनेक दृष्टियां हैं?
१. आचार संपदा – संयम की समृद्धि |
२. श्रुत संपदा - श्रुत की समृद्धि । ३. शरीर संपदा - शरीर - सौन्दर्य |
४. वचन संपदा - वचन - कौशल ।
५. वाचना सपदा - अध्यापन - पटुता ।
६. मति संपदा - बुद्धि - कोशल ।
७. प्रयोग संपदा - वाद - कौशल |
८. संग्रह परिज्ञा - संघ व्यवस्था में निपुणता ।
आचार संपदा
पहली सम्पदा है आचार संपदा | आचार्य आचार की संपदा से सम्पन्न होता है । वह आचार सम्पदा से इतना सम्पन्न होता है कि संघ के प्रत्येक सदस्य के लिए आधारभूत बन जाता है । उसके आचार की इतनी रश्मियां विकीर्ण होती हैं कि वे आभा-किरणें पूरे परिपार्श्व को प्रभावित कर देती हैं । आचार सम्पदा के चार विकल्प हैं
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१. ठार ८५
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