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________________ १२० मंजिल के पड़ाव वाली शक्ति है प्राणशक्ति । जब तक प्राणशक्ति है तब तक ये अवयव ठीक काम करेंगे। जब प्राणशक्ति क्षीण हो जाएगी तब वे अपना काम करना बन्द कर देंगे। कारण है अध्यवसाय अध्यवसाय प्राणशक्ति को कमजोर बनाते हैं। लोभ ज्यादा होगा, प्राणशक्ति क्षीण हो जाएगी। प्रायः यह देखा गया है- अधिक लोभ के कारण अकालमृत्यु ज्यादा होती है। अधिक भय के कारण भी ऐसा होता है । भय और लोभ-परस्पर जुड़े हुए हैं। व्यक्ति को आंतरिक कारणों का पता नहीं चल रहा है । निदान करने वाले बहुमूल्य वैज्ञानिक यन्त्र भी निदान नहीं कर पा रहे हैं । कारण क्या है ? भीतर है अध्यवसाय । वह मार रहा है और नाम होता है अवयवों का । समाधान कैसे मिलेगा? इसका समाधान केवल बाह्य उपकरणों पर निर्भर रहने से नहीं मिलेगा। उसकी प्राप्ति के लिए आध्यात्मिक दिशा में खोज करनी होगी। आनापान ___ अकालमृत्यु का एक कारण है आनापान । श्वास भी मौत का कारण बनता है। यह जिलाने का कारण है तो मारने का कारण भी है। श्वास के पीछे एक शब्द लगाया जाता है-सम्यक् श्वास । यदि आदमी सही ढंग से श्वास लेता है तो श्वास पूरी आयु का कारण बन जाता है । व्यक्ति गलत ढंग से श्वास लेता है तो वह मौत का हेतु बन जाता है। बहुत सारे लोग जीवन और श्वास को साथ जोड़ते हैं। उनकी भाषा होती है.... जितना श्वास लिखा है उतना ही श्वास आएगा, उतना ही जीवन होगा। वास्तव में ऐसा नहीं है। श्वास एक मापक तो हो सकता है, जो जीवन को माप लेता है किन्तु वह जीवन के साथ जुड़ा हुआ नहीं है। वह लुहार की धौंकनी-भस्त्रिका है । श्वास कितना लेना और कितना न लेना-इस पर आयु निर्भर नहीं है । वह इस बात पर निर्भर है-यदि श्वास ज्यादा लेंगे तो आयु जल्दी क्षीण होगी। श्वास कम लेंगे तो आयुष्य लंबा चलेगा। दीर्घायु होने का योग का एक फार्मूला है-दीर्घ श्वास का प्रयोग। जो व्यक्ति दीर्घ श्वास का अभ्यास करेगा, वह अकाल मृत्यु से बहुत बच जाएगा। बचने के उपाय अकालमृत्यु का पहला कारण है अध्यवसाय और सातवां कारण है आनापान । ये दोनों परस्पर जुड़े हुए हैं । यदि आनापान पर नियन्त्रण है तो अध्यवसाय पर भी नियन्त्रण होगा। अध्यवसाय पर नियन्त्रण होगा तो आनापान पर भी अपने आप नियन्त्रण हो जाएगा। जीवन के लिए आनापान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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