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________________ अकालमृत्यु के सात कारण वह पच्चीस दिन तक जीवित रही। उसने एक बूंद पानी भी नहीं पीया । वह इतने दिन किस आधार पर जीवित रही। ऐसी अनेक घटनाएं घटित होती हैं। मानना होगा-एक जिलाने वाली शक्ति है। कुछ लोगों ने उसे ईश्वरीय शक्ति कह दिया। यदि ऐसा होता तो वह एक को क्यों मारती और एक को क्यों जिलाती ? वस्तुतः मारने वाली या जिलाने वाली अपनी ही शक्ति है और वह है आयुष्य कर्म । आज के वैज्ञानिक मानते हैं-जीवन का निर्धारण जीन के द्वारा होता है । जब मृत्यु का समय नजदीक आने लगता है तब जीन की सारी शक्तियां कम होने लग जाती हैं। इस आधार पर वैज्ञानिकों ने माना-जीवन का निर्धारक है जीन । जैन दर्शन की मान्यता है-जीवन का निर्धारक है आयुष्य कर्म । रहस्य सूत्र आयुष्य कर्म को भोगने के प्रकार अलग-अलग हैं । कभी-कभी आयुष्य कर्म को ठीक अपनी गति से भोगा जाता है और कभी-कभी उस गति को त्वरा दे दी जाती है। जब गति तेज होती है तब आयुष्य जल्दी भोग लिया जाता है। यह गति तेज करने का नाम है--अकालमृत्यु । इसमें आयुष्य को भोगने गति तेज हो जाती है । व्यक्ति पैदल चलता है तब अधिक समय लगता है। जब वह गति तेज करता है, दौड़ने लग जाता है तब जल्दी पहुंच जाता है। इसी प्रकार आयुष्य कर्म को जल्दी भोगना है तो गति तीव्र कर दी जाए । यही है अकाल मृत्यु का रहस्य-सूत्र । जब आदमी को दौड़ना होता है तब एड्रिनेलिन का स्राव ज्यादा होता है। एक ओर एड्रिनेलिन का स्राव ज्यादा होता है, दूसरी ओर सूगर जमा होता है, ये सारे मिलकर गति में तोवता ला देते हैं, आदमी दौड़ने लग जाता है। एड्रिनेलिन का काम करता है अध्यवसान । संवेग की तीव्रता, भय और ईर्ष्या की तीव्रता, क्रोध और लोभ की तीव्रता-इन सबका परिणाम है अकालमृत्यु । आधार है प्राणशक्ति __आजकल अकाल मृत्यु बहत होने लगी हैं। हार्ट, किडनी और लीवर-ये तीनों इसमें भागीदारी निभा रहे हैं। इसमें महत्त्वपूर्ण कारण है अध्यवसाय । मेडिकल साइंस ने ध्यान केन्द्रित किया है अवयवों पर । अवयव ठीक काम करता है तो आदमी जीता है । अवयव ठीक काम नहीं करते हैं तो आदमी बीमार हो जाता है। हार्ट, लीवर, किडनी, तिल्ली, फेफड़े-ये सम्यक् काम करते हैं तो आदमी जीता है। ये काम करना बन्द कर देते हैं तो आदमी मर जाता है । मेडिकल साइंस ने इस बात पर ध्यान दिया पर इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि इन अवयवों को चलाने वाला कौन है ? इन्हें ठीक से काम करते रहने का निर्देश देने वाला कौन है ? इन्हें चलाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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