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मंजिल के पड़ाव
के कारणों की मीमांसा की गई है। भगवान् महावीर ने कहा--सात ऐसे कारण हैं. जिनसे व्यक्ति अकालमृत्यु को प्राप्त होता है -
१. अध्यवसान-राग, स्नेह, भय आदि की तीव्रता । २. निमित्त-शस्त्र-प्रयोग आदि । ३. आहार-आहार की न्यूनाधिकता । ४. वेदना-नयन आदि की तीव्रतम वेदना । ५. पराघात-गड्ढे आदि में गिरना । ६. स्पर्श-सांप आदि का डसना । ७. आनापान-उच्छ्वास-निःश्वास का निरोध ।
अध्यवसान
अकालमृत्यु का सबसे प्रमुख कारण है अध्यवसान । हमारे संवेग और भाव अकालमृत्यु के प्रबल हेतु बनते हैं। इन संवेगों पर नियन्त्रण हो तो आयु घटने का कारण बंद हो सकता है किंतु यह होता नहीं है । आदमी का जीवन इतना जटिल और विचित्र है कि वह संवेगों के बिना एक घंटा भी जीता नहीं है। आदमी को प्रतिपल कोई न कोई संवेग सताता रहता है । इसी आधार पर कहा गया है-आदमी का मूड बदलता रहता है। ये संवेग आयु को बहुत ज्यादा क्षीण करते हैं । यह बहुत आंतरिक और सूक्ष्म कारण है। बाहर से इसका पता नहीं चलता। व्यक्ति कभी ज्यादा खा लेता है और गड़बड़ हो जाती है । सहज पता चल जाता है-बीमारी का कारण है ज्यादा खाना । संवेग नितांत आंतरिक मामला है। यह भीतर ही भीतर इतना प्रभावित करता है जीवन को, इतना शोष लेता है कि व्यक्ति को, पता ही नहीं चलता। यह संवेगों की जटिल पहेली मनुष्य के सामने नहीं होती तो आदमी सौ वर्ष से पहले मरता ही नहीं। निर्धारक है आयुष्य कर्म
___ एक जापानी नागरिक ने पूछा-हमारे जीवन के निर्धारण का काम कौन करता है ? कहा गया----जीवन का निर्धारण करता है आयुष्य कर्म । वह जीवन का निर्धारक है। इस तथ्य को पुष्ट करने वाले बहुत प्रमाण मिलते हैं । बड़ी से बड़ी दुर्घटना हो गई, आदमी नहीं मरा। शरीर में कोई ताकत नहीं है, फिर भी आदमी नहीं मरा। एक मरणासन्न महिला भी तब तक नहीं मरती जब तक आयुष्य कर्म शेष है। डाक्टर ने एक वृद्ध महिला को देखा । उसने कहा-यह कैसे जी रही है, यह आश्चर्य है । इसके संदर्भ में हमारे मेडिकल साइंस के सारे नियम फेल हो गए हैं। हमें मानना होगाआयुष्य कर्म है । एक वृद्ध साध्वी ने अनशन किया। बिना कुछ खाए-पीए १. ठाणं ७७२
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