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________________ अकालमृत्यु के सात कारण मनुष्य की आकांक्षा जीबन और मरण का चक्र पूरा कालचक्र है। अध्यात्म के मनीषी व्यक्तियों ने कहा--आदमी जीना चाहता है, मरना कोई नहीं चाहता । यह एक सामान्य चाह है। जब आदमी मरना नहीं चाहता तब न मरने के उपाय भी खोजे गए । 'मैं अमर बनूं, अमृतत्व को उपलब्ध होऊ,' यह मनुष्य की चिर आकांक्षा रही है। ऐसा अमृत और जड़ी-बूटी खोजी जाए, जिससे आदमी मरे नहीं। आज के वैज्ञानिक भी इस खोज में लगे हुए हैं। आदमी को मृत्यु से कैसे बचाया जाए ? इस दिशा में बहुत प्रयत्न चलते रहे हैं, चल रहे हैं। पर सचाई यह है-आदमी मरता रहा है, मरता रहता है और मरता रहेगा। कोई अमर नहीं बना । देवता भी अमर नहीं बने । दीर्घायु : अल्पायु : अयथायु यह मृत्यु का प्रश्न बहुत जटिल है। आदमी एक बार जीने के बाद संसार छोड़ने से घबराता है। सुखी आदमी भी घबराता है और दुःखी आदमी भी। लोग कह देते हैं-मौत आती नहीं, हम क्या करें ? पर जब सचमुच मौत का प्रसंग आता है, तब बहुत घबरा जाते हैं। मरने की रट लगाने वाले भी वस्तुतः मरना नहीं चाहते। व्यक्ति अमर भी हो सकता इसीलिए निर्वाण को अमर माना गया किन्तु जब तक शरीर का धारण है तब तक कोई अमर नहीं होता । जीना नियति है। जीने के दो प्रकार होते हैंयथायु और अययायु । जो यथायु होता है, वह पूरा जीवन जीता है । जो अयथायु होता है, वह पूरा जीवन नहीं जीता, बीच में ही मर जाता है। यह बीच में मरने वाली बात चिन्तन को विवश करती है। तीन शब्द हैंदीर्घायु, अल्पायु और अयथायु । एक व्यक्ति की आयु लम्बी है वह दीर्घायु है और एक व्यक्ति की आयु अल्प है, वह अल्पायु है । एक व्यक्ति को जितना जीना है वह उतना नहीं जीता, वह अयथायु है । अकाल मृत्यु : सात कारण प्रश्न होता है-आदमी को जितना जीना है, उतना वह क्यों नहीं जी पाता ? इसका कारण क्या है ? उसकी अकालमृत्यु क्यों होती है ? वह असमय में मौत के मुंह में क्यों चला जाता है ? जैन आगमों में अकालमृत्यु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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