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कलियुग के सात लक्षण
कितना है वचन का दुःख
महाभारत क्यों हुआ ? एक वचन का बाण काम कर गया। महाभारत का युद्ध छिड़ गया । बड़ी-बड़ी घटनाएं इस वाचिक विद्रोह के कारण हुई हैं । हम वर्तमान के चुनावी माहौल को देखें । वे लोग, जिन्हें पूरे राष्ट्र की सत्ता को संभालना है, जब खुले बाजार में एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं, वचन के तीर फैंकते है, तब ऐसा लगता है - वचन का दुःख कितना है | जहां ऐसी मानसिकता बन गई है, वहां यह स्वीकार करने में क्या कठिनाई है - यह दुःषमा काल का प्रभाव है । उसका इतना प्रभाव है कि व्यक्ति अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना शोभाजनक मानता ही नहीं है । वह यह नहीं जानता- - मैं ओछी बात कहूंगा तो बड़प्पन से च्युत हो जाऊंगा । सज्जनता का लक्षण माना गया - सज्जन किसी का अपमान नहीं करता, किसी पर आरोप नहीं लगाता, किसी को गाली नहीं देता । आज तो यह सब करना सम्मत जैसा हो गया है । क्या इसे काल का प्रभाव न मानें ?
सतयुग : सात लक्षण
स्थानांग सूत्र में जाना जा सकता है - यह १. अकाल में वर्षा २. समय पर वर्षा
३. असाधुओं की पूजा नहीं होती ।
सतयुग के सात लक्षण बतलाए गए हैं, जिनसे सुषमा काल है । वे सात लक्षण ये हैंनहीं होती । होती है ।
४. साधुओं की पूजा होती है ।
५. व्यक्ति गुरुजनों के प्रति विनम्र व्यवहार करता है ।
६. मन सम्बन्धी सुख होता है ।
७. वचन संबंधी सुख होता है ।
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मुक्ति का उपाय
हम काल को मानकर चलें । कलियुग और सतयुग को सर्वथा अस्वीकार न करें । युग का प्रभाव होता है । उसकी मात्रा कम या ज्यादा हो जाती है । वह इसलिए होती है कि व्यक्ति काल से पूर्णतः प्रतिबद्ध नहीं है । यदि हम समाधि की अवस्था में चले जाएं तो काल का प्रभाव नहीं होता । काल के प्रभाव को टालने का यही उपाय है- -जप और ध्यान में बैठ जाओ । प्रभु का स्मरण और भजन करो, तपस्या और धर्म - ध्यान करो । इससे काल का प्रभाव कम हो जाएगा । हम दोनों अवस्थाओं में जीते हैं. किन्तु हमें कालातीत अवस्था में जाने का प्रयास करना चाहिए, जिससे हम
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१. ठाणं ७/७०
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