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मंजिल के पड़ाव
स्वयं भी काल से प्रभावित होता है इसीलिए कभी काल सुषमा बन गया
और कभी दुःषमा बन गया। कभी स्निग्ध बन गया और कभी रूक्ष बन गया। कोई भी व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक एक जैसे काल का अनुभव नहीं करता । कालचक्र बदलता रहता है। किसी भी परिवर्तन में इसका बड़ा हाथ रहता है। कलियुग : सात लक्षण
ईश्वरवादी कहते हैं- व्यक्ति को जैसा होना होता है, ईश्वर उसे वैसी मति दे देता है । ईश्वर देता है या नहीं, पर काल जरूर देता है । सब प्रभावित हैं काल से । काल के प्रभाव को केन्द्र में रखकर सात बातें बतलाई गई । दुःषमाकाल (कलियुग) के सात चिह्न हैं:
१. काल में वर्षा नहीं होती। २. अकाल में वर्षा होती है । ३: साधु की पूजा नहीं होती। ४. असाधु की पूजा होती है । ५. गुरुजनों के प्रति मिथ्या व्यवहार होता है। ६. मन का दुःख होता है ।
७. वचन संबंधी दुःख होता है । संदर्भ : वर्षा
कलियुग के पहले दो लक्षण वर्षा के संदर्भ में हैं । जब वर्षा का समय आता है, तब वर्षा नहीं होती। जब वर्षा का समय नहीं होता है, तब वर्षा होती है । दुःषमाकाल के इन दोनों लक्षणों की समीक्षा करें तो मानना होगा-यह भी सापेक्ष बात है। यह पूरे विश्व पर लागू नहीं होती। वर्षा का सम्बन्ध है कृषि के साथ । कुछ प्रदेश ऐसे हैं, जहां अतिरिक्त वर्षा होती है । बम्बई, असम और चेरापूंजी में जो वर्षा होती है, उसकी राजस्थान में कल्पना नहीं की जा सकती। यह सार्वत्रिक विषय नहीं है किन्तु एक सचाई है काल की। संदर्भ : पूजा
दुःषमा के दो चिह्न पूजा-प्रतिष्ठा से जुड़े हुए हैं। कलियुग में साधु की पूजा नहीं होती। असाधु की पूजा होती है, बुराई की पूजा होती है । इस तथ्य को घटित करना बहुत मुश्किल है । किसे अच्छा माने ? किसे बुरा माने ? आज एक बात स्पष्ट हो गई-आज कुछ भी जीतना है, पाना है तो एक शक्ति चाहिए । यह शक्ति किनसे मिली है ? जो हिंसा, तोड़-फोड़ और उपद्रव करने में कुशल हैं, उनकी शक्ति चाहिए। कोरी सज्जनता के लिए कोई कुछ १. ठाणं ७/६९
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