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कलियुग के सात लक्षण
वेदान्त में ब्रह्म को कालातीत माना गया। नैयायिक और वैशषिक दर्शन ने ईश्वर को कालातीत माना। दो धारणाएं रही-कालातीत और कालप्रतिबद्ध । इस दुनिया में जितने द्रव्य हैं, सचेतन या अचेतन-सब काल से बंधे हुए हैं । जैसे काल की सूई घूम रही है वैसे मनुष्य उस चक्र में घूम रहा है, किन्तु कुछ सत्ताओं को कालातीत माना गया । योगीजन मानते हैंसमाधि की अवस्था में जो चला जाता है, वह कालातीत हो जाता है। कालातीत का अर्थ है-काल से अप्रभावित दशा । काल का प्रभाव
प्रश्न है--काल से प्रभावित कौन नहीं होता ? कहा जाता हैमहादेव को भी साढ़े साती आई । शनि ने कहा--भगवन् ! मैं आप पर आ रहा हूं, आप सावधान रहना । महादेव ने कहा--तुम मेरा क्या विगाड़ोगे ? शनि चला गया । सात वर्ष बाद शनि ने कहा-भगवन् ! मेरा समय पूरा हो रहा है। आप आनन्द से रहें।
'मैं तो आनन्द से ही रहा ।' "भगवन् ! कैसा आनन्द ? आपने क्या किया।' ।
'मैं साढ़े सात वर्ष गुफा में ध्यान करता रहा। कहीं गया ही नहीं।'
'आप साढे सात वर्ष कारागार में कैद हो गए और क्या हो सकता
था ?'
काल प्रभावित है काल से
यह काल का चक्र प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करता है । हम इतिहास को देखें । मुगल काल आया, मौर्य काल और गुप्त काल आया । काल ही काल बदलते जा रहे हैं। काल से प्रभावित हुए बिना कोई भी नहीं रह सका । लोग सोचते थे-ब्रिटिश की ऐसी सत्ता है, जिसके राज्य में सूरज अस्त नहीं होता । एक दिन ऐसा आया- सब कुछ समाप्त हो गया। यह काल का प्रभाव है। भगवान् महावीर ने कहा-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव-इनसे सभी प्रभावित होते हैं। काल को समझना जरूरी है। काल
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