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________________ आचार्य पद की अर्हता के बीच का आचार्य वर जैसा कोई सक्षम सेतु नहीं है। भगवती की जोड़ की सारी रागें जानने वाला एक भी साधु-साध्वी नहीं है, लेकिन आचार्यवर सब रागों के ज्ञाता हैं । अनेक ऐसी बातें हैं, जिन्हें केवल आचार्यवर ही जानते हैं । हर विषय में जिसके श्रुत का अधिकार है, वह आचार्य की अर्हता को उपलब्ध होता है। शक्तिमान् _पांचवीं कसौटी है शक्तिमान होना। और सब बातें हैं पर शक्तिमान नहीं है तो सारी बातें फीकी पड़ जाती हैं। एक बात है-शरीर से बलवान् होना। दूसरी बात है -मन्त्र-सम्पन्न होना। उत्तरप्रदेश की घटना है । भयंकर गर्मी पड़ रही थी। मुनिश्री जसकरणजी और मुनिश्री मिलापचंदजीदोनों ल से संतप्त हो गए। हालत गंभीर हो गई। आचार्यश्री ने अपना ओघा मंगाया, उसके दो तार तोड़े । वे दोनों तार सन्तों को देते हुए आचार्यश्री ने कहा-ये तार दोनों को बांध दो । तार बांधते ही थोड़ी देर में सब कुछ सामान्य हो गया। ऐसे अनेक प्रसंग समय-समय पर देखे हैं। मन्त्र-सम्पन्न होना भी आचार्य के लिए जरूरी है। तीसरी बात है-शिष्य परिवार से युक्त होना। ये तीन शक्ति के मानदण्ड हैं-परिवार शक्ति सम्पन्न, मन्त्रशक्ति सम्पन्न और शरीरशक्ति सम्पन्न । कलहमुक्त आचार्य की छठी कसौटी है-कलहमुक्त होना। जिसकी प्रकृति में कलह की आदत होती है, वह आचार्य पद के योग्य नहीं होता। जो स्वपक्ष में भी कलह करता है और परपक्ष में भी कलह करता है, वह अगर आचार्य बन जाता है तो भयंकर मुसीबत खड़ी हो जाती है। आचार्य इतना प्रशांत होना चाहिए कि न स्वपक्ष में कलह करे और न परपक्ष में कलह करे । आचार्य के सामने परपक्ष का भी बहुत प्रसंग आता है । अनेक मत और मान्यताओं के लोग आते हैं। उन्हें विनोदपूर्वक सुन लेना और उत्तर भी दे देना-यह बहुत बड़ी कला और साधना है । कितनी बड़ी बात ____ एक पादरी बोला-आचार्यश्री ! आज मैंने आपका प्रवचन सुना। आपने बहुत अच्छी बातें कही, किन्तु महाप्रभु यीशु ने एक विशिष्ट बात कही है। क्या आपने बाइबिल पढ़ा है ? आचार्यश्री ने कहा-थोड़ा देखा है । यीशु ने कहा है ----'कोई तुम्हारे एक गाल पर चांटा मारे तो तुम दूसरा गाल उसके सामने कर दो। उसके साथ मित्रता का व्यवहार करो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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