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मजिल के पड़ाव
किए-अब साधुओं को पढ़ाना है, साध्वियों को पढ़ाना है । नया व्याकरण बनाना, है, काव्यानुशासन पढ़ना है। ये सारा चयन कैसे किया ? सूझ-बूझ और सृजनात्मक चेतना से उन्होंने सारी बातें सोची और धर्मसंघ में विकास के नये आयाम खोल दिए । आचार्यश्री ने अपने जीवन में कितने काम किए हैं । आगम का काम शुरू क्यों हुआ? इसका हेतु है जीनियस होना । प्रतिभा की एक ऐसी स्फुरणा है, अकस्मात् कोई ऐसी बात उतरती है कि पता नहीं चलता और एक काम हो जाता है।
न्यूटन ने कहा-एक वैज्ञानिक के लिए तार्किक होना जरूरी है। उनसे पूछा गया-यह गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत किस तर्क से उपजा ? न्यूटन ने कहा-किसी भी तर्क से नहीं, मैं भी नहीं समझ पा रहा हूं कि यह कैसे उपजा ? मैंने गिरते आदमी को देखा। वह गिर भी रहा है और सम्भल भी रहा है। यह गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत मिल गया, समस्या सुलझ गई। यह है मेधा ।
ये जो स्फुरणाएं होती हैं, सूझबूझ से उपजती हैं। सूझबूझ के बिना तात्कालिक निर्णय नहीं किया जा सकता। यह है मेधा
सं० १९९४ की घटना है। बीकानेर का चतुर्मास सम्पन्न हुआ। विदाई जुलम की तैयारी हुई। एक ओर आचार्य प्रवर जुलूस के साथ पधार रहे थे, दूसरी ओर अन्य सम्प्रदाय के आचार्य का जुलूस भी आ रहा था। दोनों ओर हजारों आदमी साथ में थे। ऐसा बिन्दु आ गया कि परस्पर में टकरा जाएं । कौन किसको रास्ता दे ? दो मिनट में यदि निर्णय नहीं किया जाता तो न जाने क्या हो जाता ? आचार्यश्री ने कहा-पीछे हट जाओ। उस समय ईश्वरचन्दजी चौपड़ा आदि न जाने कितने-कितने लोगों का खून खौल गया था । आचार्यश्री मुड़ गए । संघर्ष की सम्भावित स्थिति टल गई। इस बात का तत्कालीन नरेश गंगासिंहजी को पता लगा। उन्होंने कहा-~-तुलसीगणिजी महाराज अवस्था में तो छोटे हैं पर उन्होंने काम ऐसा किया है कि सत्तर वर्ष का आदमी भी नहीं कर सकता। उन्होंने मेरे राज्य में धर्म के नाम पर होने वाले खून खराबे को, जो सम्भावित था, टाल दिया।
यह है मेधा, आचार्य की तीसरी अर्हता। बहुश्रुत
__ आचार्य की चौथी कसौटी है बहश्रत होना। जो बहश्रत होता है, संघ का विस्तार करता है, वह आचार्य बनने के योग्य होता है। स्वयं बहुश्रुत न होगा, तो क्या करेगा? आचार्य प्रवर बहुश्रुत हैं। कहा जा सकता है-तेरापंथ का २२५ वर्ष का समय और अगला भविष्य-दोनों
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