________________
आचार्य पद की अहंता
१०७
शक्ति कमजोर है, उसमें स्मरण शक्ति कहां होगी ? स्मृति संस्कार से प्रबुद्ध होती है । संस्कार जागता है तब स्मृति होती है । आचार्य के लिए दोनों बातें बहुत जरूरी हैं। धारणा और स्मृति । अगर आचार्य की स्मति और धारणा कमजोर है, तो सब गड़बड़ा जाता है। आचार्यों के सामने बहुत जरूरी प्रश्न है लोगों को याद रखने का । एक प्रकार से तेरापंथ का आचार्य कम्प्यूटराइज्ड होता है । वे सारी बातें बड़ी विचित्रता के साथ स्मृति में रखते हैं। धारणा की प्रबलता का होना बहुत आवश्यक है। यह अर्हता है, कसौटी है--किस प्रकार आचार्य धारणा और स्मृति रखे। मेधा-धारणा की शक्ति प्राकृतिक रूप से प्राप्त होती है, किन्तु आचार्य के लिए बहुत अनिवार्य हो जाती है।
मेधा के साथ प्रतिभा का भी बहुत सम्बन्ध है । मेधा का एक अर्थ है-धारणा । दूसरा अर्थ है-मर्यादाशील होना। तीसरा अर्थ है-प्रतिभासंपन्न होना-जीनियस होना । जिस व्यक्ति में बुद्धि के साथ सृजनात्मक शक्ति होती है, वह जीनियस होता है । प्रतिभा का निदर्शन
___ आचार्य भारमलजी ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में दो नाम लिखे-खेतसी तथा रायचंद । उस समय जयाचार्य अट्ठारह वर्ष के थे । यह कैसे सम्भव था-एक छोटा साधु आचार्य के कार्य में हस्तक्षेप करे और प्रार्थना भी करे-महाराज ! आप इस पर पुनः विचार करें। इतना साहस कैसे हो सकता था? पर जयाचार्य जीनियस थे, उनमें प्रतिभा और मेधा थी । उन्हें ऐसा लगा-यह कार्य संघ के हित में नहीं होगा । अगर ऐसा हुआ, यह परम्परा पड़ी तो भविष्य में विग्रह का हेतु बन सकता है, वर्तमान में भी विग्रह का कारण बन सकता है। जयाचार्य ने प्रार्थना की-महाराज ! आपने जो किया है, वह आपकी मर्जी है। आप इस पर विचार करें। आप एक नाम रख दें तो कैसा रहे ? आप ऐसा कर दें-खेतसीजी स्वामी और उसके बाद रायचंदजी स्वामी ।
___ जयाचार्य की बात आचार्यश्री को जच गई। उन्होंने उत्तराधिकार पत्र में एक नाम हटा दिया।
यह प्रतिभा का काम था। प्रतिभा से परख लिया गया-व्यक्ति में कितनी प्रतिभा है और वह कितना मूल्यांकन कर सकता है ? यह सूझ-बूझ का होना, आकस्मिक निर्णय लेना, निर्णायक चेतना का जाग जाना, यह सारा सम्भव बनता है मेधा से । जिसमें यह प्रतिभा जाग जाती है, उसमें ये सारी बातें आ जाती हैं। सूझबूझ
हम पूज्य कालगणी के जीवन को देखें। उन्होंने कैसे सारे निर्णय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org