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________________ मंजिल के पड़ाव श्रद्धालु है, वह गण को धारण कर सकता है। आचार्यश्री ने एक प्रसंग में कहा-एक व्यक्ति के बारे में लोग बहुत कुछ सोचते थे । क्या होगा ? एक दिन उसने आचार्यवर के सामने आगम के प्रति अनास्था की बात की। आचार्यवर ने कहा-उसके बाद मेरे मन में एक धारणा बन गई-जिसमें आगमों के प्रति भी आस्था नहीं है, क्या वह आगे बढ़ने योग्य हो सकता है ? पहले श्रद्धा या आचार ? अर्हता का सबसे पहला मानदंड है आस्थावान् होना । यदि वह आस्थाहीन है, तो पता नहीं कब नैया को बीच में ही डुबो दे । जो स्वयं संदेहशील है, वह नौका डूबेगी ही। निश्छिद्र नौका होनी चाहिए । जिसमें कोई छेद नहीं होता, वह नौका तैरती है, दूसरों को भी पार ले जाती है । आचार्यपद की अहंता का एक मानदंड है आस्था । अपने लक्ष्य के प्रति, अपने कर्तव्य और अपने आधार के प्रति निश्छिद्रता होनी चाहिए । श्रद्धा पहली कसौटी है । प्रश्न आया-आचार पहले या श्रद्धा पहले ? कहा गयाश्रद्धा पहले चाहिए । उसके बिना आचार आएगा ही नहीं। श्रद्धा के बिना जीवन में न मर्यादा आएगी, न आचार आएगा और न शास्त्र आएगा। सत्यवादी । दूसरी कसौटी है सत्य होना, यथार्थभाषी होना। यहां सत्य का जो अर्थ है, वह यह है-आचार्य जो संकल्प करता है, उसका निर्वाह करने वाला होता है । यह नहीं होता-आज संकल्प किया और दो दिन बाद टूट गया । जो संकल्प का कमजोर होता है, वह आचार्य पद के योग्य नहीं होता। प्रतिज्ञा को निर्वाहित करने वाला होना चाहिए। आचार्य जो संकल्प करता है, उसका अंत तक निर्वाह करता है। वह प्रतिज्ञा के निर्वाह में समर्थ होता है। हम तेरापंथ की परम्परा को देखें। आचार्यों ने जो संकल्प किया, उसे निभाया है। व्यक्ति को निभाया है, प्रकृति को निभाया है। उन्होंने सबको निभाया है । यह दूसरी बड़ी अर्हता है-प्रतिज्ञा के निर्वाह में समर्थ होना, कमजोर न होना। मेधावी तीसरी कसोटी है मेधावी होना । धारणा में जो बुद्धि क्षम है, उसका नाम है मेधा । बुद्धि के आठ प्रकार हैं। उनमें मेधा भी एक प्रकार है। पहले अवग्रह होता है, उसके बाद ईहा, ईहा के बाद अवाय। अवाय है निर्णयात्मक स्थिति किन्तु अविच्युति नहीं है तो अवाय भी काम नहीं देता। एक ओर है स्मृति, दूसरी ओर है-अवाय । उसके बीच में है धारणा । बहुत लोग कहते हैं हमारी स्मति बहुत कमजोर है। यह बड़ा भ्रम होता है। स्मृति कमजोर नहीं होती। कमजोर होती है धारणाशक्ति । जिसकी धारणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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