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मंजिल के पड़ाव सामने आती हैं, अभिनिवेश कम होता चला जाता है, मिथ्या धारणाएं बदलती चली जाती हैं। जब तक व्यक्ति श्रुत को नहीं जानता तब तक ऐसा होता नहीं है। जीवन में ज्ञान का आग्रह होता है, दृष्टिकोण और आचरण का भी आग्रह होता है। यह एक ऐसा उन्माद है जो आचरण में भी रहता है । यह महारोग है । भंयकर बीमारी है अभिनिवेश की। चरक का श्लोक है.
विषयाभिनिवेशो यो, नित्यानित्ये हिताहिते ।
ज्ञेय: स बुद्धिविभ्रशः समं बुद्धिहि पश्यति ।। नित्य और अनित्य का भान समाप्त हो जाता है, हित और अहित की चेतना समाप्त हो जाती है, इसका नाम है बुद्धि का भ्रस । इस अभिनिवेश को मिटाने के लिए पढ़ना चाहिए।
पांचवां कारण है-मैं पढुंगा, यथार्थ भावों को जानूंगा, सचाइयों को जानूंगा । सचाई को जानने से बड़ा कोई आनन्द नहीं होता । प्रयोग : योगक्षेम वर्ष में
ये पांच कारण बतलाए गए हैं पढ़ने के ।
पांव कारण पढ़ने के हैं और पांच कारण पढ़ाने के हैं। इन दसों कारणों को हम अपने ऊपर घटित करें। क्या ये दस कारण हमारे जीवन में घटित हुए हैं ? आचार्यवर ने तीन संघीय कारण पूरी तरह निभाए हैं। इनके साथ-साथ निर्जरा भी हुई है । योगक्षेम वर्ष में ये सभी कारण घटित हुए हैं। इस वर्ष में सीखने वालों ने बहुत सीखा है और बहुत लिखा भी है। विग्रह-अभिनिवेश को कम करने के लिए भी पढ़ा है। जो नहीं सीखा गया, वह योगक्षेम वर्ष में सीखने को मिला, नई-नई बातें सीखी गई। कहना चाहिए-सूत्रकार ने यह सूत्र कब लिखा-पांच करणों से पढ़ाना और पांच कारणों से पढ़ना किन्तु उसका प्रयोग हो गया योगक्षेम वर्ष में । उसमें इन सब बातों का प्रयोग हुआ है। दुनिया ऐसी है कि दो हजार वर्ष का विचार दो हजार वर्ष बाद साकार बन जाता है। कोई कभी सोचता है और उसे आकार कभी मिल जाता है।
__हम इन दो बातों पर विशेष ध्यान दें-व्युद्ग्रह विमोचन और यथार्थ भावों को जानने के लिए पढ़ें।
श्रुतेन जायते पुंसां, व्युद्ग्रहस्य विमोचनम् ।
ज्ञानं यथार्थभावानां, तेनाध्ययनमाश्रितम् ।। विग्रह विमोचन का सूत्र है श्रुत और यथार्थ बोध का सूत्र है श्रुत । इस सूत्र को हम पकड़ लें तो सूत्र की सार्थक व्याख्या लिख पाएंगे।
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