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________________ सूत्रों का वाचन और शिक्षण संगठन, गण या संघ का एक निश्चित आधार होता है। जो निरालंब या आधारविहीन चलता है, वह ज्यादा चल नहीं पाता, बीच में गिर जाता है। प्रश्न है-धर्मसंघ का आधार क्या है ? वह है श्रुत । उसका एक दर्शन है, उसकी अपनी परम्परा है और उसी के आधार पर संघ चलता है । श्रुत की परम्परा न हो तो संघ का चलना और न चलना कोई अर्थ नहीं रखता । धर्मसंघ में श्रुत का स्थान बहुत बड़ा हो जाता है। आचार्य का सबसे बड़ा काम है-श्रुत की परम्परा को अविच्छिन्न रखना, श्रुत पर गहन चिंतन करना । आचार्यवर ने आगम संपादन का दायित्व उठाया । यह आचार्य पद के अनुरूप कार्य है । भगवती जैसे महत्त्वपूर्ण सूत्रों की आज जितनी टीका होनी चाहिए, जितना गहन उसका अर्थ है, दार्शनिक स्तर पर उसकी व्याख्या होनी चाहिए, यह श्रुत की परम्परा के पुनरुज्जीवन का उपक्रम है। क्यों पढाएं ? संघ की परम्परा को जीवित रखने के लिए श्रुत की परम्परा को जीवित और प्राणवान् रखना जरूरी है। यह हमारा आधारभूत तत्त्व है। गुरु-परंपरा से पढ़ना और पढ़ाना-दोनों बराबर चलना चाहिए। प्रश्न आया-कोई क्यों पढ़ाए ? कहा गया-पढ़ाने के मुख्य पांच प्रयोजन हैं १. संग्रह के लिए। २. उपग्रह के लिए। ३, निर्जरा के लिए। ४. श्रुत पर्यवज्ञात होगा इसलिए । ५. श्रुत-परम्परा को अविच्छिन्न रखने के लिए। संग्रह : उपग्रह संग्रह और उपग्रह-ये दोनों संघ से जुड़ी हुई प्रवृत्तियां हैं। शिष्यों का संग्रह करना और श्रुत सम्पन्न बनाना । शिष्यों को पढ़ाना चाहिए, जिससे शिष्यों में उपग्रह की क्षमता आ जाए, उपकार करने की क्षमता आ जाए, प्रयोजन को सिद्ध करने की क्षमता आ जाए। संघ में आहार की जरूरत १. ठाणं ५/२२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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