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बोधि-दुर्लभता
पांचवां विकल्प है-तप और ब्रह्मचर्य की साधना से जो दिव्यगति प्राप्त करते हैं, उनकी आलोचना भी करता है। व्यक्ति कहता है--देवता नहीं हैं. क्योंकि वे कभी उपलब्ध नहीं होते। यदि वे हैं, तो भी कामासक्त होने के कारण उनमें कोई विशेषता नहीं है । उन्माद का हेतु
सूत्रकार ने ये पांच निदर्शन प्रस्तुत किए हैं, जिनका अवर्णवाद बोला जाता है। इसका विस्तार करें तो बहुत लम्बी सूची हो जाती है। इसका कारण है-मनुष्य में अवर्ण बोलने की वृत्ति होती है । स्थानांग सूत्रकार ने अवर्णवाद का पहला परिणाम बतलाया है बोधि-दुर्लभता । इसका दूसरा परिणाम है उन्माद । प्रश्न आया-पागल कौन बनता है ? उसके जो छह कारण बतलाए गए हैं, उनमें चार बोधि-दुर्लभता के कारण हैं।'
१. अर्हत् का अवर्णवाद । २. अर्हत् प्रज्ञप्त धर्म का अवर्णवाद । ३. चातुर्वणं धर्मसंघ का अवर्णवाद । ४. आचार्य या उपाध्याय का अवर्णवाद । ५. यक्षावेश। ६. मोहनीय कर्म का उदय ।
उन्माद के ये छह कारण हैं। जिसके दिमाग में यह अवर्ण की तेज भट्टी जलती है, उसका दिमाग ठण्डा कैसे रहेगा? जिसका दिमाग गरमा जाए, वह पागल क्यों नहीं होगा ? दुर्लभ है प्रमोदभाव
हम इस सूत्र पर गहराई से चिन्तन करें। सज्जन आदमी का यह लक्षण माना जाता है-वह दूसरे की बुरी बात करता नहीं है, मन में भी नहीं लाता है। यदि मन में कोई बात आ जाती है तो वाणी के द्वारा प्रकट नहीं करता । शायद ही ऐसा कोई महाकाव्य मिले, जिसमें सज्जन और दुर्जन की चर्चा न मिले । साधु की भूमिका सज्जन से भी ऊंची है। उसके मुंह से ऐसा कोई शब्द निकले या लिखा जाए, यह सोचा ही नहीं जा सकता। साधुत्व की भूमिका प्रमोद भावना की भूमिका है। विशेषता को उन्नयन देना उसका दायित्व है, किंतु समस्या यह मनोवृत्ति है
प्रमोदो दुर्लभो लोके, ईास्ति सुलमा नृणाम् ।
गुणे संमागिता नेष्टा, दोषे संभागिता प्रिया ।। प्रमोद होना दुर्लभ है। ईर्ष्या सुलभ है, इसीलिए गुणों में सहभागी १. ठाणं ६।४३
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