SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मजिल के पड़ाव बोधि ज्ञान, दर्शन और चारित्र की संचालिका या नियामिका शक्ति है । कुछ व्यक्ति अपने आचरण के द्वारा बोधि को दुर्लभ बना लेते हैं इसीलिए आगम में बार-बार कहा गया- बोही जत्थ सुदुल्लहा - उनके लिए बोधि दुर्लभ है । बोधि का अर्थ है - एक विशेष प्रकार का विवेक । ऐसी विवेकशक्ति, जो सब जगह अपनी रोशनी प्रदीप्त करती है । दुर्लभ क्यों होती है बोधि ? प्रश्न होता है— बोधि दुर्लभ क्यों होती है ? इसका एक कारण बतलाया गया - जिस व्यक्ति में अवर्णवाद की मनोवृत्ति होती है, उसे बोधि दुर्लभ हो जाती है । जो वर्ण नहीं देखता, अवर्ण देखता है, उसे अवर्ण देखने की आदत पड़ जाती है । ९६ स्थानांग सूत्र में बोधि दुर्लभता के पांच हेतु बतलाए गए हैं : १. अहं का अवर्णवाद । २. आचार्य और उपाध्याय का अवर्णवाद | ३. अर्हत् प्रज्ञप्त धर्म का अवर्णवाद | ४. चतुर्विध संघ का अवर्णवाद । ५. तप और ब्रह्मचर्य के विपाक से दिव्य गति प्राप्त देवों का अवर्णवाद | अर्हत् का अवर्णवाद यह विचित्र बात है - जिसमें कोई कमी नहीं दिखाई देती, व्यक्ति उसका भी अवर्णवाद करता है । अर्हत् वह व्यक्तित्व है, जिसमें कोई दोष या कमी नहीं है । व्यक्ति उसका भी अवर्ण बोलता है । हम इस भ्रांति में न रहें - अवर्ण उसी का बोला जाता है, जिसमें कोई कमी या दोष होता है । कभी-कभी सर्वथा निर्दोष का भी अवर्ण बोला जाता है और कभी-कभी दोषी व्यक्ति का भी अवर्ण नहीं बोला जाता । अवर्ण बोलना निर्भर है मनोवृत्ति पर। वह निर्भर है अपने लगाव और अलगाव पर। जहां लगाव है वहां यह नहीं दिखाई देता - कोई कमी या अल्पता है । जिस व्यक्ति से लगाव नहीं है, अलगाव है, उसमें कितनी ही विशेषता क्यों न हो, व्यक्ति उसका अवर्णवाद करता है । आरोपण की वृत्ति शास्त्रकार ने कहा - अर्हत् का अवर्ण बोलने वाला बोधि को दुर्लभ करता है । व्यक्ति अर्हत् का क्या अवर्ण बोलेगा ? क्या अर्हत् का अवर्ण बोला जा सकता है ? किसी का भी अवर्ण बोला जा सकता है । अवर्ण बोलने वाले के सामने दोष का होना जरूरी नहीं है । जो रुचि से मेल नहीं खाता, वह १. ठाणं ५।१३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy