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बोधि-दुर्लभता
शाश्वत मनोवृत्ति
विशेषता और अल्पता, पूर्णता और अपूर्णता-ये युगल जीवन में साथ-साथ चलते हैं। फिर भी मनुष्य में कुछ वृत्तियों का निर्माण होता है । दूसरा व्यक्ति मुझसे बड़ा न हो, यह एक सामान्य मनोवृत्ति मिलती है। मुझसे कोई छोटा रहे, इसमें कोई आपत्ति नहीं होती । मुझसे ज्यादा विशेषता दूसरे में न हो, इस चेतना का निर्माण व्यापक स्तर पर मिलता है। जब व्यक्ति को यह पता चलता है-अमुक व्यक्ति में विशेषता का उदय हो रहा है तब एक भावना जन्म लेती है और वह है-आक्रोश की भावना। उस आक्रोश में से कुछ फूटता है, वह है अवर्णवाद । यह कोई नई और सामयिक वृत्ति नहीं है, चिरन्तन वृत्ति है। इसे शाश्वत मनोवृत्ति भी कहा जा सकता
बोधि : अर्थ-मीमांसा
भगवान् महावीर ने इसी मनोवृत्ति को लक्ष्य कर एक सूत्र का प्रतिपादन किया-कुछ व्यक्ति जानबूझ कर अपने लिए बोधि को दुर्लभ बना लेते हैं । बोधि की दुर्लभता आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत ही हानिकर है। बोधि कोरा ज्ञान नहीं है । ज्ञान, दर्शन, चारित्र-से सब बोधि हैं । बोधि का संबंध केवेल ज्ञान से ही नहीं है, दष्टि और आचरण से भी है।
बौद्ध साहित्य में बोधि का अर्थ है-क्षय और अनुत्पाद का ज्ञान होना । मेरे कर्म मल क्षीण हो चुके हैं, इस बात का ज्ञान होना। उनका अब उत्पाद नहीं होगा, इस बात का ज्ञान होना । बोधि है विवेक
जैन दर्शन की दृष्टि से हम विचार करें। यह एक ऐसी समझ है, संबोधि है, जो प्रत्येक स्थान पर हमारा साथ देती है। वह ज्ञान, दर्शन, चारित्र-इन सब में हमारा सहयोग करती है और इन सबको सम्यक् बनाए रखने में योग देती है । ऐसी समझ का होना विशिष्ट बात है । बहुत लोग पढ़ने-लिखने के बाद भी मूर्खतापूर्ण कार्य करते हैं, क्योंकि उनमें बोधि नहीं होती।
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