________________
मंजिल के पड़ाव सेवा
चौथा कारण है-जिस संघ में ग्लान और नवदीक्षित की सेवा नहीं की जाती है, उस गण में विग्रह पैदा हो जाता है। सेवा एक आश्वासन है। एक व्यक्ति घर छोड़कर पूरा जीवन देने आता है, अपने साथ कुछ भी नहीं लाता है। उसके जीवन का आश्वासन न हो, तो विग्रह को अवकाश मिल जाएगा। व्यक्ति के मन में यह चिन्तन आ जाता है-अगर बीमार हो जाऊंगा, तो क्या होगा? इस स्थिति में विग्रह हो सकता है। इस अर्थ में तेरापन्थ धर्म-संघ एक बड़ा आश्वासन है। इसके सदस्य को कोई भी चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है । संघ का मत जानना
विग्रह का एक कारण है-आचार्य या उपाध्याय संघ को पूछे बिना संघ की राय लिए बिना यात्रा करते हैं, महत्त्वपूर्ण निर्णय ले लेते हैं तो भी संघ में विग्रह पैदा हो सकता है। आचार्यवर ने दक्षिण की यात्रा की। उससे पहले संघ से अनुमति ली । संघ महामहिम है। समय-समय पर संघ का मत जानना, उसकी मनोदशा को जानना, आचार्य का कर्तव्य होता है। आचार्य और संघ का सम्बन्ध एक उपनिषद् होता है। चिर-जीवन के सूत्र
संघ में विग्रह होने के ये पांच कारण हैं। इन कारणों का निवारण करने का प्रयत्न तेरापन्थ ने किया है। दूसरे गण भी करते होंगे पर तेरापंथ संघ का जो मजबूत आधार बना है, उसका कारण यही है। आचार्य संघ में व्यवस्था के प्रति बहुत जागरूक रहता है। जो श्रुत ज्ञात है, उसे शिष्यों को पढ़ाने की पूरी व्यवस्था करते हैं। सेवा की बात को बहुत महत्त्व दिया जाता है।
ये पांच कारण गण की मजबूती की दृष्टि से, पारस्परिक तादात्म्य की दृष्टि से बहुत जरूरी हैं। ये पांचों सूत्र संघ के चिरजीवी होने का हेतु बनते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org