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व्यवस्था का अभाव : विग्रह का जन्म
संघ और व्यवस्था-दोनों परस्पर जुड़े हए हैं। व्यवस्था के बिना संघ नहीं चलता और संघ के बिना व्यवस्था नहीं चलती। दोनों का सम्बन्ध है । तेरापन्थ धर्म संघ चल रहा है, व्यवस्था के साथ चल रहा है । भगवान् महावीर का दर्शन व्यवस्था का दर्शन था। संघ को सुव्यवस्थित रूप में चलना चाहिए, परस्पर शांतिपूर्ण सहवास होना चाहिए, घिग्रह नहीं होना चाहिए---यह अनिवार्य अपेक्षा है। विग्रह : पांच कारण
प्रश्न होता है-साधु बने, घर-बार छोड़ा, आत्म-साधना के लिए चले तो फिर भला विग्रह की क्या बात हो सकती है ? किसी संघ में विग्रह क्यों होता है ?
स्थानांग सूत्र में विग्रह के पांच कारण बतलाए हैं१. गण में आज्ञा और धारणा का सम्यग् प्रयोग न करना । २. यथारात्निक कृतिकर्म का प्रयोग न करना । ३. जो सूत्रपर्यवजात धारणा किए हुए हैं, उनकी गण को उचित
समय पर वाचना न देना। ४. रोगी या नवदीक्षित साध का वैयावृत्य कराने में जागरूक न
होना।
५. गण को पूछे बिना क्षेत्रान्तर संक्रमण करना। आज्ञा और धारणा का प्रयोग।
पहला कारण है-आचार्य या उपाध्याय यदि गण में आज्ञा और धारणा का सम्यक् प्रयोग नहीं करता है तो संघ में विग्रह पैदा हो जाता है । यह आधारभूत बात है । संघ चलता है आज्ञा और धारणा के आधार पर । यदि उसका प्रयोग या पालन नहीं होता है तो संघ में अव्यवस्था या बिखराव का प्रसंग प्रस्तुत हो जाता है। श्रुतवान
दूसरा कारण है-आचार्य या उपाध्याय सूत्रों के गम्भीर रहस्यों को १. ५१४८
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