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क्रियावाद
जो बाहर प्रगट होता है, उसे हम आचरण या व्यवहार कहते हैं । क्रिया का एक वह रूप है, जो चेतन मन पर नहीं आता, अवचेतन मन पर अपना काम कर रहा है। वह हमारी आन्तरिक क्रिया का रूप है। दोनों क्रियाओं के संबंधों को ठीक समझे तो जैन दर्शन का विशाल और सूक्ष्म दृष्टिकोण, जो केवल स्थल को नहीं, सूक्ष्म को पकड़ता है, हमारे सामने बहुत स्पष्ट हो जाएगा।
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