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________________ क्रियावाद अवचेतनवाद है। पतंजलि की भाषा में यह वृत्तिवाद है। स्थानांग सूत्र में क्रिया के पांच प्रकार बतलाए गए हैं१. आरंभिकी। २. पारिग्रहिकी । ३. माया प्रत्यया । ४. अप्रत्याख्यान किया। ५. मिथ्यादर्शन प्रत्यया। आरंभिकी क्रिया एक क्रिया है आरंभिकी क्रिया, हिंसा करने वाली क्रिया । इसका अर्थ होगा-वह हमारा अन्तर का तत्त्व, जो प्राणी को हिंसा के लिए प्रेरित कर रहा है, हिंसा को अभिव्यक्ति दे रहा है, हिंसा में हमें प्रवृत्त करा रहा है । उस प्रवृत्ति का नाम है-आरंभिकी क्रिया। सूक्ष्म सिद्धांत ___ कायिकी क्रिया के दो भेद किए गए-अनुपरत कायिकी और दुष्प्रवृत्त कायिकी । एक आदमी काया से हिंसा कर रहा है । यह स्पष्ट है कि उसने काया से दोष किया है। एक आदमी बिलकुल शांत बैठा है किन्तु अपनी काया से किसी प्रकार की हिंसा या पापाचार करने का प्रत्याख्यान नहीं है, उसने काया को निवृत्त नहीं किया है तो भी वह कर्म का बंध कर रहा है शरीर के द्वारा । यह है सबसे सूक्ष्म बात । बाहरी हिंसा आदमी कम करता है । जैन धर्म की विचारधारा का हृदय है-जिस व्यक्ति ने अपनी काया को हिंसा से उपरत नहीं किया है, वह चौबीस घंटे हिंसक बना हुआ है । वह प्रतिक्षण हिंसा कर रहा है, यह एक सूक्ष्म सिद्धान्त है । जैन धर्म का मौलिक सिद्धान्त है-के बल प्रवृत्ति को पाप मत मानो किन्तु वहां तक जाओ, जहां प्रवृत्ति को पाप की प्रेरणा मिलती है । उसे खोजो। परिमार्जन किसका ? प्रश्न आया-परिमार्जन किसका करना है ? परिष्कार किसका करना है ? क्रोध आ रहा है, उसे बदलना है या जो भीतर में क्रोध को उत्प्रेरित कर रहा है, उसे बदलना है ? कारण को बदलना है या कार्य को बदलना है ? जब तक भीतर के कारण को नहीं पकड़ा जायेगा तब तक समस्या का समाधान नहीं होगा। महावीर ने इस भाषा में-अग्गं च मूलं च विगिच धीरे । भगवान महावीर मूल का छेदन करने वाले थे। एक अग्र है और एक मूल । एक तो वृक्ष का अग्र भाग है, जहां पत्ते १. ठाणं, ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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