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निदर्शन है तेरापंथ
हम पच्चीस वर्ष की परम्परा का विश्लेषण करें तो बड़ा श्रेय जाएगा आचार्य भिक्षु को, जिन्होंने आगम के अनेक सूत्रों को व्यावहारिक रूप दिया है। आचार्य भिक्षु ने सेवा के बारे में जितनी व्यवस्था की, उतनी अन्यत्र दुर्लभ है । हम इस बात को जानते हैं - सिद्धांत सिद्धांत होता है किंतु कोई भी सिद्धांत व्यवस्था का सहारा पाए बिना क्रियान्वित नहीं हो सकता । सबसे बड़ी कमी यही है- बहुत सी अच्छी बातें हैं पर उन्हें व्यवस्था का योग नहीं मिलता । व्यवस्था के कंधों पर चढ़े बिना कोई भी सिद्धांत अपने पैरों से चल नहीं सकता । हमें यह स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं हैमहानिर्जरा और महापर्यंबसान का जो सिद्धांत है, उसकी क्रियान्विति का एक संपूर्ण उदाहरण है - तेरापंथ । यह सिद्धांत और यह गौरवशाली परंपरा सदा आगे बढ़े, इसका हम सदा मूल्यांकन करते रहें तो सेवा की परम्परा जीवन्त बनी रहेगी ।
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