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________________ महानिर्जरा महापर्यवसान महानिर्जरा : दस हेतु प्रश्न है - महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला कौन होता है ? स्थानांग सूत्र में मुनि के लिए महानिर्जरा महापर्यवसान के दस हेतु बतलाए हैं'. १. अग्लान भाव से आचार्य का वैयावृत्य २. अग्लान भाव से उपाध्याय का वैयावृत्य ८३ ३. अग्लान भाव से स्थविर का वैयावृत्थ ४. अग्लान भाव से तपस्वी का वैयावृत्य ७. अग्लान भाव से ५. अग्लान भाव से रोगी का वैयावृत्य ६. अग्लान भाव से नवदीक्षित का वैयावृत्य कुल का वैयावृत्य गण का वैयावृत्य संघ का वैयावृत्य ८. अग्लान भाव से ९. अग्लान भाव से १०. अग्लाग भाव से साधर्मिक का वैयावृत्य इन दसों की सेवा करने वाला महानिर्जरा महापर्यवसान वाला होता है । सेवा : व्यापक संदर्भ हम इसे व्यापक संदर्भ में देखें । सेवा करने के कई हेतु होते हैं । एक व्यक्ति अपेक्षा की दृष्टि से सेवा करता है । वह अपनी किसी अपेक्षा की पूर्ति के लिए सेवा करता है । दूसरा विकल्प है - कोई कमजोर है, असमर्थ है, तो उसकी सेवा करनी चाहिए। तीसरा विकल्प है - कोई दयनीय स्थिति में है, उसकी सेवा करनी चाहिए । चौथा विकल्प है - जो मानसिक दृष्टि से बहुत दुर्बल है, उसकी सेवा करनी चाहिए। पांचवां विकल्प है - किसी के मन में कोई दैन्य भाव आ गया, सहायता का भाव आ गया, उसकी सेवा करनी चाहिए । छठा विकल्प है - परस्पर में संघर्ष हो गया, किसी व्यक्ति का मन आहत हो गया, उस अवस्था में सेवा करनी चाहिए । एक विकल्प हैकुल, गण और संघ की सेवा करनी चाहिए। यह सेवा विशेष समय में की जाती है । कुछ वर्ष पूर्व तेरापंथ धर्म संघ में थोड़ी समस्या पैदा हो गई, संघर्ष पैदा हो गया उस समय जिन लोगों ने सेवा की, आचार्यवर ने उनकी न जाने कितनी बार प्रशंसा की होगी ? ऐसे कुछ अवसर आते हैं, जहां कुल, गण और संघ की सेवा की जाती है । एक विकल्प है -- शैक्ष की सेवा करनी चाहिए । जो सर्वथा नया है, जिसने नया जीवन जीना शुरू किया है । बिलकुल बच्चे की जैसी सेबा है उसकी । उसे सब कुछ नये बच्चे की भांति १. ठाणं, ५ / ४४, ४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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