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६. आचार-शास्त्र के आधारभूत
तत्त्व (१)
ग्यारह अंगों में सूत्रकृत दूसरा अंग है। जैन आगमों में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसमें अनेक विषयों का विशद प्रतिपादन हुआ है। आचार-शास्त्र के निरूपण का यह महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । इसे हम आचार-शास्त्रीय ग्रन्थ कह सकते हैं।
आचार्य आर्यरक्षित ने आगमों को चार अनुयोगों में विभक्त किया(१) द्रव्यानुयोग-दर्शनशास्त्र, (२) गणितानुयोग-गणितशास्त्र, (३) चरणकरणानुयोग-आचारशास्त्र, (४) धर्मकथानुयोग-कथाशास्त्र ।
सूत्रकृतांग को द्रव्यानुयोग के अन्तर्गत माना है, परन्तु वस्तुतः यह चरणकरणानुयोग का शास्त्र है। ___ पश्चिमी दर्शनों में आचार शास्त्र का स्वतंत्र अस्तित्व है। भारतीय दर्शनों में भी प्राचीन काल में आचार-शास्त्र का स्वतंत्र विभाग था। किन्तु उसकी समीचीन स्वतंत्र अभिव्यञ्जना न होने के कारण उसका स्वतंत्र अस्तित्व गौण हो गया। पश्चिमी विचारकों ने आचार-शास्त्र का अध्ययन यूनानी दर्शनों और यूनानी दार्शनिकों के माध्यम से किया और उन्होंने भारतीय दर्शन की नितान्त उपेक्षा की। पश्चिमी दार्शनिकों ने हेराक्लाइटस, शुकरात, प्लेटो, अरस्तू आदि दार्शनिकों के दर्शन के आधार पर आचार और नीतिशास्त्र की व्याख्या की, किन्तु किसी भी भारतीय आचार्य, दार्शनिक या शास्त्र की मीमांसा के आधार पर प्रकाश नहीं डाला। भारतीय समीक्षकों ने भी पश्चिमी दृष्टिकोण के आधार पर आचार की मीमांसा की। उन्होंने भारतीय आचार-ग्रन्थों का गहन अध्ययन करने का आयास नहीं किया।
चार अनुयोगों के आधार पर यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि आचार-शास्त्र की स्वतंत्र व्यवस्था थी । वह उस समय चरणकरणानुयोग के अन्तर्गत आता था। पर उसका सही मूल्यांकन नहीं हो सका।
एक प्रश्न आता है कि यदि सूत्रकृतांग आचार-शास्त्र है तो उसमें जीव, आत्मा,
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