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१०० मनन और मूल्यांकन
अहिंताणं
आयरियाणं
- आइरियाणं
आगम साहित्य में यकार के स्थान में इकार के प्रयोग मिलते हैं - वयगुत्तवइगुत्त । वयर - वइर ।
इस प्रकार 'आयरिय' और 'आइरिय' में रूपभेद है ।
• णमो लोए सव्वसाहूणं - णमो सव्वसाहूणं - अभयदेवसूरी के अनुसार भगवती सूत्र के मंगलवाक्य के रूप में उपलब्ध नमस्कार मंत्र का पांचवां पद ' णमो सव्वसाहूणं' है। 'णमो लोए सव्वसाहूणं' का उन्होंने पाठान्तर के रूप में उल्लेख किया है - णमो लोए सव्वसाहूण ति क्वचित्पाठः । ' इस पाठान्तर की व्याख्या में उन्होंने बताया है कि 'सर्व' शब्द आंशिक सर्व के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है | अतः परिपूर्ण सर्व का बोध कराने के लिए इस पाठान्तर में 'लोक' शब्द का प्रयोग किया गया है' । 'लोक' और 'सर्व' – इन दोनों शब्दों के होने पर यह प्रश्न होना स्वाभाविक ही है और अभयदेवसूरी ने इसी का समाधान किया है ।
दशाgतस्कंध के वृत्तिकार ब्रह्मऋषि ने भी 'णमो लोए सव्वसाहूणं' को पाठान्तर के रूप में व्याख्यात किया है'। इसकी व्याख्या में वे अभयदेवसूरी का अक्षरश: अनुसरण करते हैं ।
— मागधी
हमने अभयदेवसूरी की वृत्ति के आधार पर भगवती सूत्र में 'णमो सव्वसाहूणं' को मूलपाठ और ' णमो लोए सध्वसाहूणं' को पाठान्तर स्वीकृत किया है । इसका यह अर्थ नहीं है कि णमो लोए सव्वसाहूणं' सर्वत्र पाठान्तर है। आवश्यक सूत्र में हमने ' णमो लोए सव्व साहूणं' को ही मूल पाठ माना है । हमने आगम- अनुसंधान की जो पद्धति निर्धारित की है, उसके अनुसार हम प्राचीनतम प्रति या चूणि, वृत्ति आदि व्याख्या में उपलब्ध पाठ को प्राथमिकता देते हैं। सबसे अधिक प्राथमिकता आगम में उपलब्ध पाठ को देते हैं । आगम के द्वारा आगम के पाठसंशोधन में सर्वाधिक प्रामाणिकता प्रतीत होती है। इस पद्धति के अनुसार हमें सर्वत्र 'णमो लोए सव्व साहूणं' इसे मूलपाठ के रूप में स्वीकृत करना चाहिए था, किन्तु नमस्कार मन्त्र किस आगम का मूलपाठ है, इसका निर्णय अभी नहीं हो पाया है। यह जहां कहीं उपलब्ध है वहां ग्रन्थ के अवयव के रूप में उपलब्ध नहीं है, मंगलवाक्य के रूप में उपलब्ध है । आवश्यक सूत्र के प्रारंभ में नमस्कार मन्त्र
१. भगवती वृत्ति, पत्र ४ ।
२ . वही, पत्र ४ :
तत्र सर्वशब्दस्य देश सर्वतायामपि दर्शनादपरिशेष सर्वतोपदर्शनार्थमुच्यते 'लोके' - मनुष्यलोके न तु गच्छादौ ये सर्वसाधवस्तेभ्यो नमः ।
३. हस्तलिखित वृत्ति, पत्र ४ ।
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