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प्रवचन ९
संकलिका
० लोभं अलोभेण दुगुंछमाणे, लद्धे कामे नाभिग हेइ । .० विण इत्तु लोभं निक्खम्म, एस अकम्मे जाणति पासति ।
(आयारो २/३६-३७) ० सबसे बड़ा है चेतना का प्रकाश ० सकर्मा--प्रवृत्ति करने वाला ० अकर्मा---निवृत्ति करने वाला ० प्रवृत्ति का कारण है लोभ • ज्ञेय एक : ज्ञान अनेक • अकर्मा : अर्थ मीमांसा
जो ज्ञानावरण कर्म रहित है, वह अकर्मा है जो ध्यानस्थ है, वह अकर्मा है
जिसमें लोभ नहीं है, वह अकर्मा है ० पातंजल योग-दर्शन का अभिमत ० अलोभ की साधना और ज्ञाता-द्रष्टा में सम्बन्ध • शरीर की निष्क्रियता : चेतना की सक्रियता ० कायोत्सर्ग : निकम्मा होने की कला ० राष्ट्रकवि दिनकर का मंतव्य ० विधायक भाव : प्रशिक्षण • प्रयत्न-साध्य धर्म है निवृत्ति ० साधक तत्त्व है अलोभ ० जानाति-पश्यति का रहस्य-सूत्र
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