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सुख-दुःख अपना-अपना
५.१
किसलिए ? कहा गया- -आत्म-हित के लिए, अपने हित के लिए। यह भी स्वार्थ की बात है, पर यह ऐसा स्वार्थ नहीं है जिससे दूसरे के स्वार्थ का विघटन हो । जिस स्वार्थ को साधने में दूसरे का स्वार्थ विघटित हो, वह स्वार्थ अच्छा नहीं होता, निम्न स्तर का होता है ।
आत्मानुकंपी : परानुकंपी
अध्यात्मशास्त्र का दृष्टिकोण इस सन्दर्भ में बहुत उदात्त रहा है । बौद्धों के महायान सम्प्रदाय का मुख्य सूत्र है - 'मैं अकेला सुखी नहीं बनूंगा चाहे कुछ भी हो जाए। सबको साथ लेकर चलूंगा । जो सबको होगा, वह मुझे हो जाएगा । यह महापथ है ।' जैन तीर्थंकरों का भी यह दृष्टिकोण रहा । दो प्रसिद्ध शब्द हैं - आत्मानुकम्पी और परानुकंपी । व्यक्ति आत्मानुकंपी भी बने, परानुकंपी भी बने । यह स्वार्थ से ऊपर उठने की बात है, किन्तु इसमें भी स्वार्थ की बात है । इसमें स्वार्थ को इतना विराट् बना
दिया गया कि दूसरे के कल्याण में भी अपना कल्याण है, अपनी निर्जरा है, अपना हित है । लाभ किसे मिला ? परकल्याण कहां समायोजित हुआ ? वह अपने कल्याण का ही साधन बन गया । अन्तर इतना आया - सुखवाद और स्वार्थवाद विराट् बन गया । जब किसी दोष का निरसन करना होता है तो उसे विराट् रूप देना पड़ता है। एक के साथ प्रेम करो, यह विकार कहलाएगा | सबके साथ प्रेम करो, यह पवित्र मनोभाव कहलाएगा। एक के साथ प्रेम करना विकार है, सबके साथ प्रेम करना पवित्रता है । छोटी चीज को बड़ा रूप दे दो, वह पवित्र बन जाएगी । केवल अपने सुख की कामना प्रशस्त नहीं बनती । सबके सुख की कामना करो, वह विराट् बन जाएगी, उसमें अपना सुख भी संध जाएगा ।
-सुख और स्वार्थ को विराट् बनाएं
महत्वपूर्ण सचाई है - सुख और स्वार्थ को विराट् बनाना ! सुखवाद और स्वार्थवाद की सीमा समझें । केवल अपने सुख और स्वार्थ को महत्व न दें । भ्रमवश आदमी केवल अपने दुःख को ही दूर करने की बात सोचता है । वह सुख को पाना चाहता है, दुःख को दूर भगाना चाहता है । आदमी देखता है - मैंने दुःख को दूर भगा दिया । किन्तु सचाई यह हैसुख-दुःख अपना-अपना होता है इसलिये व्यक्ति ऐसा आचरण न करे, जिससे दुःख बढ़े, सुख घटे | यह आत्मकर्तृत्व का सिद्धांत है । हम सोचें-- आज तक इस दुनियां में किसी व्यक्ति ने किसी व्यक्ति को सुखी बनाया ? या दुःखी बनाया ? हम सत्य तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। कोई व्यक्ति किसी को सुखी या दु.खी नहीं बना सकता, यह वास्तविकता है । कहना यह चाहिए ---सुख की सामग्री जुटाई जा सकती है, सुविधाएं जुटाई जा सकती हैं किन्तु सुख
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