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हिंसा मृत्यु है ध्यान में रखकर महावीर ने कहा था--हिंसा ग्रंथि है। हिंसा मोह है । हिंसा मृत्यु है । हिंसा नरक है । इसका हार्द है-जब-जब असंयम बढ़ता है, हिंसा की समस्या विकराल बन जाती है। वह मनुष्य के लिए मौत बन जाती है। हिंसा मृत्यु कैसे है ? इस तथ्य को हम विज्ञान के सन्दर्भ में समझे। आज पर्यावरण (इकोलोजी) पर बहुत चर्चा हो रही है। वैज्ञानिकों का मानना है—यदि पर्यावरण का असन्तुलन बढ़ता रहा तो एक दिन मनुष्यजाति समाप्त हो जाएगी। केवल मनुष्य ही नहीं, प्राणी जगत् भी समाप्त हो जाएगा। दो भविष्यवाणियां
एक भविष्यवाणी है आज की और एक है ढाई हजार वर्ष पुरानी । अभी मैंने हिन्दुस्तान में एक लेख पढ़ा। उसमें विश्व के भविष्य की स्थिति का चित्रण था। ढाई हजार वर्ष पहले रचित भगवती सूत्र में विश्व के बारे में ऐसी ही भविष्यवाणी की गई है । फ्रांस, अमेरिका आदि देशों के भविष्यवक्ताओं की अनेक भविप्यवाणियां छपी हैं किन्तु भगवती सूत्र की यह भविष्यवाणी अभी तक प्रकाश में नहीं आई है। वैज्ञानिक जगत् द्वारा प्रलय के सन्दर्भ में की जा रही भविष्यवाणी को भगवती सूत्र के सन्दर्भ में पढ़ें तो सहज ही यह प्रश्न उभरेगा—क्या यह लेख भगवती सूत्र को देखकर लिखा गया है ? या यह विकल्प उठेगा—इस लेख में जो लिखा गया है, वह भगवती सूत्र के प्रणेता ने हजारों वर्ष पहले कैसे लिख दिया ? भाव ही नहीं, कहीं-कहीं भाषा भी समान है। भविष्य विश्व का
लेख की भाषा है.---'आज पर्यावरण का सन्तुलन बिगड़ रहा है । इसका एक कारण है-नाभिकीय विस्फोट । वैज्ञानिक बतलाते हैं—यदि नाभिकीय युद्ध हुआ, अणुयुद्ध हुआ तो विश्वस्थिति में भारी परिवर्तन आएगा । सारी धरती और सारा आकाश धूल से भर जाएगा। कहीं तापमान कम हो जाएगा, कहीं तापमान बहुत अधिक बढ़ जाएगा । सारा जल और स्थल भूभाग विषाक्त बन जाएगा। जीव जगत् बिल्कुल नष्ट हो जाएगा। कहीं भयंकर सर्दी पड़ेगी, कहीं भयंकर गर्मी। सारे हिमखंड पिघल जाएंगे । समुद्र का जल-स्तर दो-तीन मीटर ऊंचा चला जाएगा। समुद्र तट पर बसे नगर और बस्तियां डूब जाएंगी, उसके आस-पास का स्थल भूभाग जलमय बन जाएगा। एक प्रकार से हिमयुग आएगा, केवल पानी ही पानी दिखाई देगा। यह नाभिकीय विस्फोट और अणुयुद्ध से बनने वाली स्थिति है।
दूसरा कारण है—वनों की अंधाधुंध कटाई। सारे संसार में वनों की अन्धाधुन्ध कटाई हो रही है। उसके कारण कार्बन-डाई-आक्साइड की मात्रा
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