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साधना कब और कहां?
हमारे सामने जितने पदार्थ हैं, जितने व्यक्ति और जितनी घटनाएं हैं, जितनी समस्याएं और जितनी परिस्थितियां हैं, यदि उन सबकी व्याख्या करें तो दो स्थितियां प्रस्तुत होंगी--या हम बिलकुल असत्य में चले जाएंगे या सत्य के निकट पहुंच जाएंगे, सत्य की भूमिका तक पहुंच जाएंगे। यदि हमने निरपेक्ष एकान्तवाद का सहारा लिया तो हम निश्चित ही असत्य की भूमिका में चले जाएंगे। यदि हमने थोड़ी-सी अनाग्रहदृष्टि से समझने का प्रयास किया तो हम सत्य की परिधि में चले जाएंगे। यदि हमने सापेक्षदृष्टि का प्रयोग किया तो हम सत्य के भीतर प्रवेश पा जाएंगे। सापेक्षवाद
भगवान महावीर ने सापेक्षवाद का सूत्र प्रस्तुत किया, अनेकान्तवाद, विभज्यवाद या स्याद्वाद का दर्शन दिया। महावीर ने कहा-यदि हम सापेक्षवाद का प्रयोग नहीं करेंगे, केवल निरपेक्षदृष्टि से चलेंगे तो सत्य के मंदिर में हमारा प्रवेश नहीं होगा। हम प्रत्येक बात में सापेक्षदृष्टि का प्रयोग करें। चाहे वह साधना या आराधना का प्रश्न है, दुकान या ऑफिस का प्रश्न है। रसोई घर में भी अनेकांत का प्रयोग जरूरी है, दुकान और ऑफिस में भी अनेकान्त का प्रयोग जरूरी है, एक मिल या फैक्ट्री को चलाने के लिए भी अनेकान्त का प्रयोग आवश्यक है। यदि अनेकांत का प्रयोग होगा सो समन्वय सधेगा, मैत्री सधेगी, परस्परता सधेगी। यदि एकांत का प्रयोग होगा तो संघर्ष बढ़ेगा, लड़ाइयां बढ़ेगी। अनेकांत दृष्टि एक ऐसा तत्त्व है, जिसके सहारे हम व्यवहार की समस्याओं को भी सुलझा सकते हैं, पारमार्थिक समस्याओं का समाधान भी पा सकते हैं। साधना कहां करें ?
___ एक प्रश्न है—साधना कब करें ? कहां करें ? यह परमार्थ का एक प्रश्न है, जो बहुत उलझा हुआ है। कुछ लोग कहते हैं-हिमालय की गुफाओं में ही साधना अच्छी हो सकती है, एकांत एवं निर्जन स्थानों में धर्म की आराधना सम्यक् हो सकती है। इस दुनिया के कोलाहल के बीच रहते हुए साधना कैसे संभव बन सकती है ? जहां प्रदूषण है, वातावरण शुद्ध नहीं है, हवा भी शुद्ध नहीं है वहां कैसी साधना होगी? यह मत उन व्यक्तियों का है, जो एकांत साधना का आग्रह करते हैं, हिमालय की गुफाओं में साधना
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