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अस्तित्व और अहिंसा
वह न स्त्री है, न पुरुष है और न नपुंसक है। वह शरीरवान् नहीं है, जन्म-धर्मा नहीं है, लेपयुक्त नहीं है।
वह शब्द के द्वारा प्रतिपाद्य नहीं है, तर्क के द्वारा गभ्य नहीं है, मति के द्वारा ग्राह्य नहीं है।
उसका बोध कराने के लिए कोई उपमा नहीं है, कोई पद नहीं है। बद्ध आत्मा : मुक्त आत्मा
आखिर आत्मा है क्या ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा गया--वह अरूपी सत्ता है । वह अकेला है, कोई साथी नहीं है । वह ज्ञानमय सत्ता है, सर्वतः चैतन्यमय है । आत्मा का एक लक्षण बन गया-रूप रहित सत्ता । अस्तित्व है पर अरू पी है। जो केवल शरीर को आत्मा मानते हैं, शरीर से भिन्न आत्मा नहीं मानते, उन्हें यह भेदरेखा बताई गई-शरीर रूपी है और आत्मा अरूपी। आकाश भी अरूपी है लेकिन वह ज्ञानमय सत्ता नहीं है। आत्मा ज्ञानमय सत्ता है।
__ आत्मा का यह स्वरूप सामने आता है तब आत्मा का एक पूरा चित्र प्रस्तुत होता है, संसारी जीव का रूप बिलकुल बदल जाता है। हम शरीरधारी हैं, मुक्त आत्मा अशरीरी है । हम मूर्त हैं, मुक्त आत्मा अमूर्त । मुक्त आत्मा केवल ज्ञानमय सत्ता है। हमारी आत्मा ज्ञानमय है तो साथ-साथ अज्ञानमय भी है, आवरणयुक्त भी है । इस आधार पर आत्मा के दो भेद हो गएशुद्ध आत्मा और बंधी हुई आत्मा। आत्मा का ध्यान
प्रश्न है-हम किस आत्मा का ध्यान करें ? आचारांग सूत्र के पांचवें अध्ययन में आत्मा के संदर्भ में जो सूत्र हैं, वे आत्मा के ध्यान के सूत्र हैं। यदि इस सम्पूर्ण आलापक को प्रतिदिन बीस-पचीस बार भी दोहराया जाए तो आत्मा की बात समझ में आती चली जाएगी। आत्मा के ध्यान का दूसरा प्रकार है- राग-द्वेष-मुक्त क्षण में जीने का अभ्यास । हम निर्विकल्प समाधि में रहने का अभ्यास करें । अभ्यास करते-करते हम एक दिन आत्मानुभूति के क्षण में चले जाएंगे। हमें केवल आत्मा को जानना नहीं है, आत्मा को उपलब्ध होना है, सब विचारों से मुक्त होकर केवल चैतन्यमय अनुभूति में चले जाना है । जब यह भूमिका प्राप्त होती है, तब आत्मा का स्वरूप समझ में आ जाता है, आत्मा का साक्षात्कार होने लग जाता है ।
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