SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बारह एक अस्तित्व अभिव्यक्त है पशु और पक्षी के रूप में, एक अस्तित्व अभिव्यक्त है पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति के रूप में। ० अस्तित्व समान है, व्यक्तित्व समान नहीं है । अस्तित्व दृश्य नहीं है, व्यक्तित्व दृश्य है। अस्तित्व शुद्ध है, व्यक्तित्व मिलावटी है। • व्यक्तित्व मरता है, अस्तित्व नहीं । व्यक्तित्व को मारा जा सकता है, अस्तित्व को नहीं । ० महावीर के दर्शन का हृदय है-- तुम किसी व्यक्तित्व को मारते हो, यह शरीर से जुड़ी हुई हिंसा है, वध तुम किसी का अनिष्ट चिन्तन करते हो, यह मानसिक हिंसा है। तुम किसी व्यक्तित्व को दबाने के लिए किसी व्यक्तित्व को उठाते हो, किसी व्यक्तित्व के उत्थान के लिए किसी व्यक्तित्व को दबाते हो, यह भावात्मक हिंसा है। तुम किसी व्यक्तित्व को मार सकते हो, अस्तित्व को नहीं, तुम किसी व्यक्तित्व को गिरा सकते हो, अस्तित्व को नहीं । • यह सचाई है तुम किसी को मार सकते हो, मिटा नहीं सकते। किसी व्यक्तित्व का उत्थान-पतन तुम्हारे हाथ में है, यह सोचना भी सही नहीं है। सम्भव है-उत्थान पतन में बदल जाए और पतन उत्थान में। ० अहिंसा का आधार है अस्तित्व । इसका अर्थ है-अस्तित्व मरता नहीं है, मिटता नहीं है इसलिए किसी को मत मारो, मत गिराओ। ० अहिंसा का आधार व्यक्तित्व नहीं है क्योंकि वह स्थाई नहीं है, एकरूप नहीं है। आज है, कल नहीं है। • गंभीर दार्शनिक शीर्षक है अस्तित्व और अहिंसा । इसमें प्रतिबिम्बित है महाप्रज्ञ की दार्शनिक चेतना । महाप्रज्ञ स्वयं व्यक्तित्व से अस्तित्व की अनुभूति की ओर प्रस्थित हैं। प्रस्तुत पुस्तक एक अभिप्रेरणा है अस्तित्व की दिशा में प्रस्थान करने की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy