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संपादकीय
० अस्तित्व एक सावभौम सचाई है।
जो है, वह अस्तित्व है। जिसका अस्तित्व है, वह है। उसका होना हमारी स्वीकृति अस्वीकृति पर निर्भर नहीं है। अस्तित्व शाश्वत है। वह कल भी था, आज भी है, कल भी बना रहेगा। अस्तित्व निरन्तर अस्तित्व में परिणमन करता रहता है इसलिए उसका कभी नास्तित्व नहीं होता। इसका अर्थ है----अस्तित्व अजर-अमर है। एक मनुष्य जन्म लेता है, मर जाता है पर आत्मा का अस्तित्व बना रहता है । जन्म और मरण की शृंखला से परे है आमा का अस्तित्व । आज एक पुस्तक है। कल वह नष्ट हो सकती है किन्तु परमाणु का
अस्तित्व कभी विनष्ट नहीं होता। ० हिंसा मृत्यु है, किसी को मारना हिंसा है।
जो जन्म लेता है, वह मरता है। जो जन्मता ही नहीं, वह मरेगा कैसे? अस्तित्व अनादि है। जिसकी आदि नहीं है, उसका अन्त कैसे हो सकता है ?
जो अमर और शाश्वत है, उसे कौन मार सकता है ? ० प्रश्न ये भी हैं
क्या हिंसा अस्तित्व के साथ जुड़ी हुई है ? क्या हिंसा होगी तो अस्तित्व नहीं रहेगा ? क्या अहिंसा और अस्तित्व में कोई सम्बन्ध है ?
यदि दोनों में सम्बन्ध है तो सम्बन्ध-सेतु क्या है ? ० हमारा अस्तित्व है लेकिन हमें अस्तित्व की अनुभूति नहीं है। हम व्यक्तित्व में उलझे हुए हैं। अस्तित्व की अभिव्यक्ति है व्यक्तित्व । एक अस्तित्व अभिव्यक्त है मनुष्य के रूप में,
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