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शाश्वत धर्म
शाश्वत और अशाश्वत का प्रश्न बहुत चर्चित रहा है। धर्म कब से है ? यह एक प्रश्न है। कुछ लोग कहते हैं-वैदिक धर्म सबसे पुराना है । कुछ लोग कहते हैं- जैन धर्म बहुत पुराना है। प्रत्येक धर्म का अनुयायी अपने धर्म की प्राचीनता को सिद्ध करने का प्रयत्न करता है । इतिहास का एक विषय बन गया-कौनसा धर्म पुराना है ? जहां इतिहास की बात समाप्त होती है वहां प्रागैतिहासिक काल की बात प्रस्तुत हो जाती है। वह अनंत काल पीछे चला जाता है । इसका अर्थ है-धर्म अनादि है । प्रश्न वही आता है----कौन सा धर्म ? यदि हम किसी धर्म को लाख या करोड़ वर्ष पुराना माने तो भी काल का आदि-बिन्दु पकड़ में नहीं आएगा। जब से कालचक्र चल रहा है, तब से धर्म चल रहा है। इसलिए कौनसा धर्म पुराना है ? इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया जा सकता। हम जिस धर्म को अधिक प्राचीन मानेंगे, उसकी एक सीमा अवश्य आएगी। शाश्वत है अहिंसा धर्म
भगवान् महावीर ने इस प्रश्न का बहुत युक्तिसंगत उत्तर दिया । उन्होंने यह नहीं कहा-श्रमण धर्म, अर्हत् या निर्ग्रन्थ धर्म पुराना है अथवा वैदिक धर्म पुराना है । उन्होंने अजीब उत्तर दिया-जो धर्म सब सम्प्रदायों से ऊपर है, देशातीत और कालातीत है, जो सार्वभौम है, सबको मान्य है, वह धर्म शाश्वत है। महावीर ने कहा-जितने अर्हत् अतीत में हुए हैं, जो वर्तमान में हैं और जो भविष्य में होंगे, उन सभी अर्हतों ने इस शाश्वत धर्म का निरूपण किया--किसी भी प्राणी को मत मारो। यह अहिंसा धर्म शुद्ध धर्म है, शाश्वत है । इसमें कोई दोष नहीं निकाल सकता, मतभेद प्रदर्शित नहीं कर सकता । पूरे जगत् को देखने और परखने के बाद इस धर्म का प्रतिपादन किया गया । सब जीवों के खेद को जानकर इस धर्म का प्रतिपादन किया गया । जो आत्मज्ञ थे, आत्मतुला को जानने वाले थे, उन्होंने आत्मा का साक्षात्कार कर इस सचाई को अभिव्यक्ति दी। समान होता है अनुभव
हमारे पास जानने के दो साधन हैं-बुद्धि और अनुभव । बुद्धि से हम बहुत बातें जानते हैं, उन्हें महत्व भी देते हैं किन्तु जहां बुद्धि का प्रश्न है वहां भेद का होना भी अनिवार्य है । दस बुद्धिमानों को एक स्थान पर बिठा
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