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________________ १०६ अस्तित्व और अहिंसा जे लोभदंसी से ज्जदंसी जो लोभ को देखता है, वह प्रेम को देखता है। जे पेज्जदंसी से दोसदंसी जो प्रेम को देखता है, वह द्वेष को देखता है । जे दोसदंसी से मोहदंसी जो द्वेष को देखता है, वह मोह को देखता है। जे मोहदंसी से गब्भदंसी जो मोह को देखता है, वह गर्भ को देखता है । जे गब्भदंसी से जम्मदंसी जो गर्भ को देखता है, वह जन्म को देखता है। जे जम्मदंसी से मारदंसी जो जन्म को देखता है, वह मृत्यु को देखता है । जे मारदंसी से निरयदंसी जो मृत्यु को देखता है, वह नरक को देखता है । जे निरयदंसी से दुक्खदंसी जो नरक को देखता है, वह दुःख को देखता है । अन्तहीन चक्र दुःख-चक्र का आदि-बिन्दु है--क्रोध और अन्तिम बिन्दु है दुःख । कहा जाता है----चौरासी लाख जीवयोनि का एक चक्र है, जिसमें प्राणी निरन्तर घूमता रहता है । उसमें एक ही दरवाजा है। उसमें से निकल पाना बड़ा कठिन है। कहीं दरवाजा मिल जाए, भाग्य साथ दे और व्यक्ति आंख न मूंदे तो इस भ्रमण से छुटकारा मिल जाता है। किन्तु जब भाग्य साथ नहीं देता है तो यह बात समझने में भी कठिनाई होती है । जहां कुछ रास्ता मिलने का प्रसंग आता है, वहां आंख मूंद लेने की बात आ जाती है । हम इस भाषा में सोचें-क्रोध और दुःख का एक अन्तहीन चक्र है । उससे निकल पाना बहुत कठिन है । अज्ञान का एक ऐसा आवरण छाया हुआ है कि आदमी आंख मूंदकर चल रहा है । आंख खुली होने पर भी वह आवरण देखने में एक अवरोध बना रहता है । कभी-कभी आदमी जानबूझकर भी आंख मूंद लेता है । यही कारण है--व्यक्ति दु:ख के मूल की ओर ध्यान नहीं देता। वह दुःख के स्थूल रूप को मिटाने में ही अपनी शक्ति का नियोजन करता है । चिन्तन का कोण ___ शरीर में ज्वर आता है, जुकाम लग जाती है। व्यक्ति सोचता हैदुःख पैदा हो गया। वह उसके इलाज की चिन्ता करने लग जाता है। परिचारक भी कहते हैं-इसका जल्दी इलाज कराओ। व्यक्ति को क्रोध भी आता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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