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________________ क्या अरति ? क्या आनन्द ? की आदत बन गई तो सुख के साथ-साथ दुःख को भी पकड़ लेंगे। जैसे सुख पकड़ में आएगा वैसे ही दुःख भी पकड़ में आएगा। हम अपनी आदत धोबी जैसी बनाएं, सुख और दुःख को पकड़ने की आदत बदल जायेगी। धोबी का कार्य __ एक ब्राह्मण किसी अनजाने गांव में पहुंच गया। उसने एक व्यक्ति से पूछा-नगर में बड़ा आदमी कौन है ? व्यक्ति का उत्तर था—ताड़ के वृक्ष । ब्राह्मण का दूसरा प्रश्न था—दाता कौन है ? दाता है धोबी । वह सुबह कपड़े ले जाता है और शाम को लौटा देता है दक्ष और चतुर कौन है ? दूसरों के धन का हरण करने में सभी दक्ष और चतुर हैं । तुम ऐसे नगर में क्यों रह रहे हो ? नीम का कीड़ा नीम को छोड़कर कहां जाए ? ब्राह्मण यह सुनकर स्तब्ध रह गयाविप्रास्मिन् नगरे महान वसति कः तालद्रुमाणां गणः । को दाता रजको ददाति वसनं प्रातर्ग हीत्वा निशि। को दक्षः परकीयवित्तहरणे सर्वेऽपि पौराः जनाः, त्वं किं जीवसि भो सखे ! कृमि कुलन्यायेन जीवाम्यहम् ॥ दुःख का कारण है पकड़ धोबी सुबह कपड़े लाता है, शाम को लौटा देता है । हम भी ऐसी ही आदत बनाएं, सुख दुःख आए, उसे पकड़ें नहीं, ग्रहण न करें। ऐसा करने वाला व्यक्ति सुखी हो सकता है किन्तु जो रखना जानता है, पकड़ना जानता है, जो आता है उसे भोग लेता है, उसका दुःखी होना अनिवार्य है । महावीर ने कहा-दुःख को भी मत पकड़ो, आनन्द या सुख को भी मत पकड़ो। जो सुख और शांति से जीना चाहते हैं, उन सबके लिए यह बहुत काम की बात है । केवल काम में लेना और देखना बहुत दुःख का कारण नहीं बनता किन्तु जहां बन्धन और पकड बन जाती है, वहां द:ख होता है। जो भी सामने आता है, व्यक्ति उसे पकड़ लेता है। वह यह नहीं सोचता-उसका परिणाम क्या होगा ? समस्या यह भी है --- वह पकड़ता चला जा रहा है किन्तु अपनी पकड़ से अनजान बना हुआ है । मानसिक तनाव का कारण एक संन्यासी ने राजा जनक से कहा----महाराज ! वासना छुट नहीं रही है । जनक ने एक खंभे को पकड़ लिया और जोर से चिल्लाए---खम्भे ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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