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________________ भेद में छिपा अभेद जिसने नमस्कार महामंत्र को धारण कर लिया, वह श्रावक बन गया। वह तुम्हारा परम बांधव है। सामाजिकता : भाईचारे का सिद्धान्त यह भाईचारे का सिद्धान्त था पर जैन लोग इसे अपना नहीं पाए। आज कोई हरिजन नमस्कार मंत्र को धारण करता है तो उसे भाई नहीं माना जाता। आज कोई दूसरी जाति का व्यक्ति जैन बनता है तो उसे भाई नहीं माना जाता। दादा जिनचंद्र सूरी ने जिस परमबंधुता वाली बात पर बल दिया, उसे समाज में मान्यता नहीं मिली। यदि वह बात मान्य होती तो आज जैन धर्म सामाजिक दृष्टि से, संगठन की दृष्टि से और दर्शनाचार की दृष्टि से बहुत शक्तिशाली होता। दर्शनाचार को जो महत्त्व मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल पाया। इसका परिणाम है - जैन धर्म संख्या की दृष्टि से आज भी शक्तिशाली नहीं है। कोरा आध्यात्मिक धर्म उन लोगों के लिए उपयोगी होता है जो तत्व की गहरी पैठ रखते हैं, तत्त्व की गहराई में जाना चाहते हैं। जहां सामाजिक जीवन में भाईचारे की भावना नहीं होती, साधर्मिकता नहीं होती, यह सात्विक गर्व नहीं होता कि यह मेरा साधर्मिक भाई है, हम एक ही धर्म को मानने वाले और एक ही मंत्र का जप करने वाले हैं, वहां समाज शक्तिशाली नहीं बनता। जहां साधर्मिकता की अनुभूति, भाईचारे की अनुभूति नहीं होती वहां सामाजिकता का विकास नहीं होता सामाजिकता की समस्या इस्लाम धर्म सामाजिकता की दृष्टि से बहुत शक्तिशाली रहा है और इसका कारण यह भावना है - जो मुसलमान बन गया, वह अपना हो गया। सांभर की झील में जो भी पड़ा, वह नमक बन गया। यह जो अपनाने की वृत्ति है, व्यवहार या सामाजिकता की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। राजपूत, जाट आदि जातियों के कितने लोग जैन धर्म के निकट आए पर उन्हें ऐसा कोई शक्तिशाली नेता नहीं मिला, जो उनको अपनाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ा सके। लोगों को ऐसा प्रतीत होता है - हम जैन धर्म को तात्विक दृष्टि से बहुत अच्छा मानते हैं, उसके प्रति हमारे मन में श्रद्धा भी है लेकिन जो पहले से जैन बने हुए हैं, वे हमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003085
Book TitleBhed me Chipa Abhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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