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जैन धर्म और वैदिक धर्म
एक
पांच आदमी बैठे हैं। एक हिन्दू है, एक मुसलमान है, ईसाई है, एक सिख है और एक जैन है। कुछ बाहरी लक्षणों के आधार पर यह अनुमान किया जा सकता है अमुक व्यक्ति हिन्दू है, अमुक व्यक्ति मुसलमान, ईसाई या सिख है। किसी व्यक्ति के चोटी है तो वह हिन्दू है। किसी व्यक्ति के दाढ़ी है और मूंछ नहीं है तो वह मुसलमान है। ये सब बाहरी लक्षण हैं। इनमें फर्क हो सकता है किन्तु मनुष्य की मूल प्रकृति में कोई अन्तर नहीं है। भेद कहां है?
प्रत्येक व्यक्ति के दो आंखे हैं, दो कान हैं, दो पैर और दो हाथ हैं। सबके पास फेफड़ा और हृदय है । सब व्यक्तियों की शारीरिक संरचना एक जैसी है, चाहे वे किसी भी जाति या संप्रदाय से बंधे हुए क्यों न हों। यदि ऐसा होता हिन्दू का हृदय अलग होता और मुसलमान का हृदय अलग तो भेद की बात समझ में आ जाती। ऐसा नहीं है कि हिन्दू का हृदय दाईं ओर है तो मुसलमान का हृदय बाईं ओर है। हिन्दू का लीवर बाईं ओर है तो मुसलमान का दाईं ओर । प्रकृति ने ऐसी कोई भेदरेखा नहीं खींची है। यदि ऐसी कोई भेदरेखा होती तो भेद की बात सहज ग्राह्य बन जाती। ऐसा लगता है - प्रकृति के जगत् में कोई भेद नहीं है। भेद पैदा किया है जाति और संप्रदाय में बंधी मानसिकता ने। कुछ विचारों ने भेदों की सृष्टि अवश्य की है और इसी कारण अनेक धर्म-सम्प्रदाय अस्तित्व में आए हैं।
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धर्म की दो शाखाएं
भारतीय धर्म-दर्शन की दो शाखाएं हैं जैन धर्म और वैदिक धर्म । इन दोनों को सामान्य दृष्टि से देखें तो कोई भेद पकड़ में नहीं आता । यदि दोनों की आचार संहिता को देखें तो भेद की बात दिखाई नहीं
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