________________
भेद में छिपा अभेद
राज्य की व्यवस्था भी अच्छी नहीं होगी। राज्य की व्यवस्था अच्छी नहीं होगी तो समाज व्यवस्था अच्छी नहीं होगी, जीवन की प्राथमिक आवश्यकताएं सब लोगों को समान रूप से उपलब्ध नहीं हो पाएंगी। समाज में अव्यवस्था फैलेगी, आपाधापी चलेगी, समृद्ध लोग कमजोर लोगों को निगलते रहेंगे।
सापेक्ष है प्रभाव
-
हम इस सचाई को समझें- राजनीति समाज की व्यवस्था का एक पवित्र सिद्धान्त है । उसमें धर्म का सापेक्ष प्रभाव है। धर्म के प्रभाव से निरपेक्ष होकर कोई भी राजनीति अच्छी नहीं चल सकती, हालांकि राजनीति के कुछ अपने मौलिक सिद्धान्त हैं और वहां धर्म की बात मान्य नहीं हो सकती । यदि राजनीति में सर्वत्र धर्म का सिद्धान्त व्याप्त हो तो धर्म और राजनीति को दो मानने की जरूरत ही नहीं होगी । जहां धर्म और राजनीति को एक बना दिया जाता है, वहां न धर्म रहता है और न राजनीति । धर्म का लक्ष्य है आत्मा को पाना । जो लोग ईश्वर में विश्वास करते हैं, उनकी भाषा में ईश्वर को पाना ईश्वरीय संदेशों को स्वीकार करना है। वीतराग के मार्ग पर चलना धर्म का परम कर्तव्य है। इसमें समाज व्यवस्था आड़े नहीं आएगी। जहां कहीं भी केवल धर्म के आदेशों पर समाज को चलाया जा रहा है वहां धर्म और समाज-व्यवस्था में तालमेल नहीं हो पाया है। वर्तमान युग की धारणाएं बदल गई हैं। समस्याएं जटिल बन गई हैं। इस स्थिति में धर्म के डेढ़ हजार वर्ष पुराने अनेक आदेश अप्रासंगिक हो गए हैं। वे आज की सामयिक समस्याओं के संदर्भ में संगत नहीं लग रहे हैं। आजकल परिवार नियोजन पर बल दिया जा रहा है। बढ़ती आबादी की समस्या, खाद्य की समस्या आदि को देखते हुए परिवार नियोजन को महत्त्व मिल रहा है। धर्म में परिवार नियोजन मान्य नहीं है। यह एक बड़ा द्वन्द्व है और इसका कारण है - दो हजार वर्ष पहले जो सामयिक व्यवस्थाएं दी गई थीं, वे आज उपयोगी नहीं रही हैं।
'शाश्वत और सामयिक मूल्य
कुछ मूल्य शाश्वत होते हैं और कुछ सामयिक । इस संदर्भ में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org