________________ ज्ञान, कर्म और भक्ति अखण्ड व्यक्तित्व के लिए ज्ञान का होना जरूरी है, कर्म और भक्ति का होना जरूरी है। कोरा ज्ञान है, जानने की क्षमता है और क्रिया की शक्ति नहीं है तो जीवन खण्डित रहता है। सुप्रसिद्ध विचारक जैनेन्द्र कुमार जी बहुत बार कहते थे- मेरे पास चिन्तन है, मैं सोच सकता हूँ पर कठिनाई यह है कि मेरे में कर्मजा शक्ति नहीं है। जैनेन्द्र जी ने कहा- मेरे मन में आचार्यश्री के प्रति जो अनुराग का भाव है, वह इसलिए है कि आचार्यश्री में ज्ञान के साथ-साथ कर्मजा शक्ति भी है। आचार्यश्री जानते हैं, सोचते हैं और कर डालते हैं। ज्ञान और कर्म- दोनों होते हैं तो भी व्यक्तित्व परिपूर्ण नहीं बतना। आदमी जानता है और उसमें कर्म करने का सामर्थ्य है तो अहंकार के लिए खुला निमंत्रण मिल जाता है। व्यक्ति जानने की शक्ति और कर्म करने की शक्ति- दोनों से संपन्न हो और अहंकारी न हो तो आश्चर्य की बात हो सकती है। जीवन में अहंकार आता है, जीवन टूटना शुरू हो जाता है। अहंकार से बचने का उपाय है भक्ति योग। समर्पण, विश्वास और श्रद्धा का भाव प्रबल होता है तो अहंकार को पनपने का अवसर नहीं मिलता। जिसमें श्रद्धा, समर्पण और विश्वास नहीं है, अहंकार उस पर हावी हो जाता है। -आचार्य महाप्रज्ञ जैन विश्व भारती For Private a partona ose Onyut.) Jain Education International www.jainelibrary.org