SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य भिक्षु और रस्किन १३७ भिक्षु ने व्यवहारवाद पर बहुत बल दिया। जहां व्यवहार क्लांत होता है, उसमें रूखापन आता है वहां उस संगठन में विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। आचार्य भिक्षु और रस्किन ने ठीक इसी बात पर बल दिया कि किसी भी आदमी को मशीन मान लेना बहुत बड़ी भूल है। जहां यह माना जाएगा वहां समस्याएं पैदा हो जाएंगी। रस्किन की एक बात मुझे बहुत अच्छी लगी। उन्होंने लिखा- एक धर्मोपदेशक, जो सत्य का प्रतिपादन करता है, यदि उसे सत्य का प्रतिपादन करने के कारण कोई मार डाले तो मर जाना कबूल करे, पर वह झूठ बात न कहे। मरते दम तक सत्य का प्रतिपादन करना, यह धर्मोपदेशक का महान् कर्तव्य है। जो बात रस्किन ने कही, आचार्य भिक्ष ने उसे जीया। आचार्य भिक्ष ने सत्य का प्रतिपादन किया। सचाई के प्रतिपादन के लिये सैकड़ों कठिनाइयों को झेला। उन्होंने मरते दम तक सत्य को नहीं छोड़ा। आचार्य भिक्षु सत्य का प्रतिपादन करते रहे, कठिनाइयों को झेलते रहे। ऐसे लोग बहुत कम मिलते हैं। रस्किन के इस वाक्य ने आचार्य भिक्ष के जीवन में साकार रूप ग्रहण किया। धर्मोपदेशक अगर भय और प्रलोभन के साथ अपनी बात कहता है तो वह सही अर्थ में सच्चा धर्मोपदेशक नहीं होता। आचार्य भिक्ष ने हमेशा सत्य का उद्घाटन किया, भय और प्रलोभन के दबाव से सर्वथा मुक्त होकर किया। श्रम का महत्त्व गांधी जी ने श्रम का जो सिद्धान्त सीखा, उसमें टालस्टाय और रस्किन- दोनों मुख्य रहे हैं। रस्किन ने इस बात पर बल दिया कि सही जीवन वही है, जो सादा और श्रम युक्त जीवन हो। बड़प्पन और छुटपन के जो झठे मानदण्ड समाज में विकसित हो गये हैं, वे समाज के लिये हितकर नहीं हैं। आचार्य भिक्ष ने भी श्रम की प्रतिष्ठा कम नहीं की। उन्होंने स्वयं तो श्रम का जीवन जीया किन्त साध समाज को जो व्यवस्थाएं दी, उनमें भी श्रम को काफी महत्त्व दिया। प्रत्येक मुनि के लिए बोझ उठाना, गोचरी लाना, पानी लाना, कचरा निकालना आदि आवश्यक कर दिया। सब मुनि बराबर श्रम करें, ऐसी व्यवस्था आचार्य भिक्षु ने दी इसीलिए तेरापंथ के साधु-साध्वियां बहुत श्रमनिष्ठ रहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003085
Book TitleBhed me Chipa Abhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy