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भेद में छिपा अभेद
आचार्य भिक्षु के सामने जगत् का प्रश्न था। दोनों के फलित में सर्वोदय होता है। सोलोमन से प्रभावित
रस्किन एक यहूदी व्यापारी सोलोमन से प्रभावित था। उसके विचार बड़े ही मार्मिक थे, सत्यपरक थे। उसके विचार थे- सबकी भलाई में ही हमारी भलाई है। सबकी भलाई सोचें तभी हमारी भलाई हो सकती है। सबको छोड़कर केवल अपनी भलाई की बात कभी संभव नहीं हो सकती। यह था सोलोमन का चिंतन। सोलोमन का दूसरा विचार था कि जो आदमी धन कमाने के लिए गरीबों को सताता है, वह अन्त में संताप भोगेगा। यह नैतिकता का विचार था। उसका तीसरा विचार था – अमीर और गरीबदोनों को समान समझो। इन विचारों का प्रभाव रस्किन पर पड़ा और उसने अपने लेखों में सोलोमन के विचारों को बहुत महत्त्व दिया। रस्किन ने अपनी जो स्थापनाएं की, उस भूमिका पर उसने चिन्तन किया और चिन्तन का निष्कर्ष 'अन्टू दि लास्ट' नामक पुस्तक में प्रस्तुत किया। उस पुस्तक का गांधी जी पर बहुत प्रभाव हुआ। सबसे बड़ी भूल
रस्किन का एक विचार था कि मनुष्य बहुत भूलें करता है। सबसे बड़ी भूल यह करता है कि वह आदमी को मशीन मानकर उससे काम लेता है। उसके साथ स्नेह और सहानुभूति का व्यवहार नहीं करता। आचार्य भिक्षु ने भी इस सचाई को पकड़ा। जब तक आदमी-आदमी के साथ स्नेह और सहानुभूति का व्यवहार नहीं करेगा तब तक समाज या संगठन कभी अच्छा नहीं चल सकेगा। आचार्य भिक्षु ने अंतिम समय में अपने साधुओं को जो शिक्षा दी, उसका महत्त्वपूर्ण सूत्र था- सब साधु-साध्वियां परस्पर में सौहार्द का भाव रखना, स्नेह और वात्सल्य का भाव रखना। कोई संगठन स्नेह और वात्सल्य के अभाव में अच्छा चल नहीं सकता। जिस संगठन में स्वार्थ की अनुभूति होने लगती है, उसमें गहराई नहीं आ सकती। हर आदमी सशंकित रहता है। धर्मोपदेशक का कर्तव्य व्यवहार का बड़ा सूत्र है- आश्वस्त करना, विश्वस्त रहना। आचार्य
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